यम के फायदे अनेक

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
शुक्रवार, 17 सितम्बर 2010 (16:11 IST)
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योग के प्रथम अंग 'यम' को नैतिकता का पाठ माना जाता है, लेकिन यह शरीर और मन के ताप तथा रोग नष्ट तो होते ही हैं साथ ही यह जीवन में शांति, शक्ति और समृद्धि के द्वार खोलता है। यम के पाँच प्रकार हैं- (1)अहिंसा, (2)सत्य, (3)अस्तेय, (4)ब्रह्मचर्य और (5)अपरिग्रह।

(1) अहिंसा : अर्थात सबको स्वयं के जैसा समझना ही अहिंसा है। मन, वचन और कर्म से हिंसा न करना ही अहिंसा माना गया है। स्वयं के साथ अन्याय या हिंसा करना भी अपराध है। क्रोध करना, लोभ, मोह पालना, किसी वृत्त‍ि का दमन करना, शरीर को कष्ट देना आदि सभी स्वयं के साथ हिंसा है।

*अहिंसा के लाभ : अहिंसक भाव रखने से मन और शरीर स्वस्थ होकर शांत‍ि का अनुभव करता है। जो व्यक्ति अहिंसा का भाव रखता है उसके मन से संताप मिट जाता है।

(2) सत्य : सत्य का आमतौर पर अर्थ माना जाता है झूठ न बोलना। सत् और तत् धातु से मिलकर बना है सत्य, जिसका अर्थ होता है यह और वह- अर्थात यह भी और वह भी, क्योंकि सत्य पूर्ण रूप से एकतरफा नहीं होता।

*सत्य के लाभ : सत्य को समझने के लिए एक तार्किक बुद्धि की आवश्यकता होती है। तार्किक‍ बुद्धि आती है भ्रम और द्वंद्व के मिटने से। भ्रम और द्वंद्व मिटता है मन, वचन और कर्म से एक समान रहने से। इससे जीवन का लक्ष्य साधने में आसानी होती है।

(3) अस्तेय : इसे अचौर्य भी कहते हैं अर्थात चोरी की भावना नहीं रखना। धन, भूमि, संपत्ति, नारी, विद्या आदि किसी भी ऐसी वस्तु जिसे अपने पुरुषार्थ से अर्जित नहीं किया या किसी ने हमें भेंट या पुरस्कार में नहीं दिया, को लेने के विचार मात्र से ही अस्तेय खंडित होता है।

*अस्तेय के लाभ : चोरी की भावना से चित्त में जो असर होता है उससे मानसिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। मन रोगग्रस्त हो जाता है। अचौर्य की भावना से मौलिकता और पुरुषार्थ का जन्म होता है। दोनों से मन और शरीर मजबूत बनते हैं।

(4) ब्रह्मचर्य : आमतौर पर गुप्तेंद्रियों पर संयम रखना ही ब्रह्मचर्य माना जाता है। ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ है उस एक ब्रह्म की चर्या या चरना करना। अर्थात उसके ही ध्यान में रमना और उसकी चर्चा करते रहना ही ब्रह्मचर्य है। समस्त इंद्रियों के संयम के अस्खलन को भी ब्रह्मचर्य कहते हैं।

*ब्रह्मचर्य के लाभ : ब्रह्मचर्य से जहाँ शारीरिक बल की प्राप्ति होती है वहीं मन में स्वत: ही पवित्रता का जन्म होता है। इससे रोगों से लड़ने की क्षमता का विकास होता है तथा जीवन दीर्घ बनता है। जो व्यक्ति ब्रह्म (ईश्व) में अटूट आस्था रखता है उसकी बिखरी हुई शक्ति एकत्र होने लगती है।

(5) अपरिग्रह : इसे अनासक्ति भी कहते हैं अर्थात किसी भी विचार, वस्तु और व्यक्ति के प्रति मोह न रखना ही अपरिग्रह है। कुछ लोगों में संग्रह करने की प्रवृत्ति होती है, जिससे मन में भी व्यर्थ की बातें या चीजें संग्रहित होने लगती हैं। इससे मन में संकुचन पैदा होता है। इससे कृपणता या कंजूसी का जन्म होता है। आसक्ति से ही आदतों का जन्म भी होता है। मन, वचन और कर्म से इस प्रवृत्ति को त्यागना ही अपरिग्रही होना है।

*अपरिग्रह के लाभ : जो व्यक्ति अपरिग्रह की भावना में रहता है उसमें तत्काल ही रोगों से छुटकारा पाने की ताकत का जन्म होता है। दुख और सुख में वह एक समान रहता है तथा मृत्यु काल में देह से छुटकारा पाने में किसी भी तरह की मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता।

**यम के लाभ : यम से मन मजबूत और पवित्र होता है। मानसिक शक्ति बढ़ती है। इससे संकल्प, स्वयं और ईश्वर के प्रति आस्था का विकास होता है। सभी तरह के शारीरिक और मानसिक रोगों से छुटकारा पाने की यह कारगर तकनीक है।

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