योग से रोमांस का आनंद

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
प्रेमी-प्रेमिकाओं में यदि वैचारिक और समझ के मतभेद हैं तो तकरारें कभी भी अलगाव में बदल सकती हैं। योग हमारे प्यारभरे जीवन को नए-नए आयाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पति या पत्नी से चल रही तकरार को भी आनंदायक बनाया जा सकता है। जरूरी नहीं है कि रोमांस सिर्फ प्रेमिका के साथ ही होता है यह तो आपके यौगिकव्यवहार पर निर्भर करता है।

योग हमारे विचारों और भावनाओं को एक नए रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम है। योग के माध्यम से आप अपने प्रेमी या प्रेमिका के प्रति और अधिक संवेदनशील होकर उससे तालमेल बैठाने में सक्षम हो जाते हैं। यह आपसी विश्वास और देखभाल को बढ़ाकर जीवन के प्रति आपके सकारात्मक व्यवहार को जगाता है साथ ही यह हास्य प्रधान जीवन शैली का विकास करता है।

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कल्पना करना सीखें :
योग की ताकत इतनी है कि आप अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में चीजों को देखना शुरू कर देते हैं। योग की मदद से आप एक पूरी 'नई दुनिया' की कल्पना कर सकते हैं। एक ऐसी दुनिया जिसमें प्यार और आनंद के अलावा कुछ न हो। योग आपके अहंकार को पिघलाकर उसे समर्पण में बदल सकता है। यह आपको गलती करने से तो रोकता ही है, साथ ही आपके साथी द्वारा की गई गलती को माफ करने की क्षमता देता है। आप क्यों नहीं अच्छे जीवन की कल्पना करते हैं? यह कल्पना करना भी योगा टिप्स ही है। कल्पना तो ज्ञान से भी महत्वपूर्ण होती है। करके तो देंखे। कल्पना करें की आप प्यार करना सीख रहे हैं।

प्यार करना सीखें :
सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिक विषय प्यार करने के लिए प्यार होना और सीखना आवश्यक है। जरूरी नहीं कि किसी लड़की या लड़के के प्रति प्रेम से हो। दरअसल योग आपके व्यक्तित्व को प्रेमपूर्ण बना सकता है। इस प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व की आज दुनिया को बहुत जरूरत है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को इस दुनिया में असहाय या अकेला पाता है। ऐसे में जरूरत है सभी को प्रेम की। तो कहें, 'ऑल इज वेल एंड ऑल इज वन।'

कैसे होगा यह संभव:
योग का प्रथम अंग यम के प्रथम सूत्र 'सत्य' को समझें। सत्य की ताकत ही प्यार को जोड़े रखती है। कथनी, करनी और व्यवहार में समानता ही सत्य की ताकत है। दूसरा सूत्र अपरिग्रह इसे अनासक्ति भी कहते हैं अर्थात किसी भी विचार, वस्तु और व्यक्ति के प्रति मोह न रखना ही अपरिग्रह है। मोह और प्यार में फर्क को समझें। प्यार स्वतंत्रता देता है किंतु मोह अप्रत्यक्ष गुलामी है जिससे दुख का जन्म होता है।

अब तीसरे सूत्र को समझें। शरीर और मन की पवित्रता ही शौच है। तन और मन को स्वच्छ रखें। इससे आपके साथी को भी अच्छा अनुभव होगा। प्यार में पवित्रता का बहुत महत्व है। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। हम क्या सोचते हैं, क्या करते हैं और क्या कहते हैं, इस सब पर सतर्क निगाहें रखने से एक ईमानदार और दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण होता है। क्या आप अपनों के प्रति ईमानदार नहीं रहना चाहते?

प्राणायाम : प्राणायाम आपके मन और मस्तिष्क को स्वस्थ बनाता है। यह आपके व्यक्तित्व को और प्रेमपूर्ण तथा समझपूर्ण बनाने के लिए बहुत ही लाभदायक है। दो लोगों को जोड़ने के लिए इ‍तना काफी है। इतना ही कर लें तो बहुत है और इतना भी नहीं कर पाएँ तो फिर किसी योग और मनोचिकित्सक से मिलें। धन्यवाद जो आपने यह आलेख पढ़ा।

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