लक्ष्य को साधें प्रत्याहार से

आष्‍टांग योग का पाँचवा अंग

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
NDND
अष्टांगयोग का पाँचवाँ अंग प्रत्याहार है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पाँच योग के बाहरी अंग हैं अर्थात योग में प्रवेश करने की भूमिका मात्र। सही मायने में धनुष में बाण चढ़ाकर उसे पीछे तक खींचकर लक्ष्य की ओर निशाना लगाने की स्थिति है प्रत्याहार।

आपका लक्ष्य चाहे सांसारिक हो या आध्यात्मिक, यह ऐसी प्रत्यंचा है कि बाण यदि उससे छूटा तो लक्ष्य की हिम्मत नहीं हैं कि वह अपने स्थान से सरक जाए। जर ा सोचे ं पाँचो ं इंद्रियो ं क ी ऊर्ज ा ए क जग ह इकट्‍ठ ा होक र लक्ष् य क ी ह ी दिश ा मे ं गम न करन े लगे ं त ो क्य ा हो । इसीलि ए ऋषिज न कहत े ह ै क ि इंद्रियो ं क े व्यर् थ स्खल न क ो रोके ं औ र उस े उ स दिश ा मे ं लगाए ँ जिसस े आपक ा जीव न सु ख औ र शांतिम य व्यती त हो।

क्या है प्रत्याहार : वासनाओं की ओर जो इंद्रियाँ निरंतर गमन करती रहती हैं, उनकी इस गति को अपने अंदर ही लौटाकर आत्मा की ओर लगाना या स्थिर रखने का प्रयास करना प्रत्याहार है।

जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है उसी प्रकार इंद्रियों को इन घातक वासनाओं से विमुख कर अपनी आंतरिकता की ओर मोड़ देने का प्रयास करना ही प्रत्याहार है।

क्या है वासनाएँ : काम, क्रोध, लोभ, मोह यह तो मोटे-मोटे नाम हैं, लेकिन व्यक्ति उन कई बाहरी बातों में रत रहता है जो आज के आधुनिक समाज की उपज हैं जैसे शराबखोरी, सिनेमाई दर्शन और चार्चाएँ, अत्यधिक शोरपूर्ण संगीत, अति भोजन जिसमें माँस भक्षण के प्रति आसक्ति, महत्वाकांक्षाओं की अंधी दौड़ और ऐसी अनेक बातें जिससे क‍ि पाँचों इंद्रियों पर अधिक भार पड़ता है और अंतत: वह समयपूर्व निढाल हो बीमारियों की चपेट में आ जाती है।

नुकसान : आँख रूप को, नाक गंध को, जीभ स्वाद को, कान शब्द को और त्वचा स्पर्श को भोगती है। भोगने की इस वृत्ति की जब अति होती है तो इस सबसे मन में विकार की वृद्धि होती है। ये भोग जैसे-जैसे बढ़ते हैं, इंद्रियाँ सक्रिय होकर मन को विक्षिप्त करती रहती हैं। मन ज्यादा व्यग्र तथा व्याकुल होने लगता है, जिससे शक्ति का क्षय होता है।

उपाय : इंद्रियों को भोगों से दूर करने तथा इंद्रियों के रुख को भीतर की ओर मोड़कर स्थिर रखने के लिए प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास से इंद्रियाँ स्थिर हो जाती हैं। सभी विषय समाप्त हो जाते हैं। अतः प्राणायाम के अभ्यास से प्रत्याहार की स्थिति अपने आप बनने लगती है। दूसरा उपाय है रोज सुबह और शाम पाँच से तीस मिनट का ध्यान। इस सबके बावजूद अदि आपके भीतर संकल्प है तो आप संकल्प मात्र से ही प्रत्याहार की स्थिति में हो सकते हैं। हालाँकि प्रत्याहार को साधने के हठयोग में कई तरीके बताए गए हैं।

लाभ : यम, नियम, आसन और प्राणायम को साधने से प्रत्याहार स्वत: ही सध जाता है। इसके सधने से व्यक्ति का एनर्जी लेवल बढ़ता है। पवित्रता के कारण ओज में निखार आता है। किसी भी प्रकार के रोग शरीर और मन के पास फटकते तक नहीं हैं। आत्मविश्‍वास और विचार क्षमता बढ़ जाती है, जिससे धारणा सिद्धि में सहयोग मिलता है। खासकर यह अनंत में छलाँग लगाने के लिए स्वयं के तैयार होने की स्थिति है।

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