व्रतों में श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य योग

Webdunia
शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011 (15:55 IST)
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अष्टांग योग के प्रथम अंग यम का चतुर्थ चरण है ब्रह्मचर्य ( brahmacharya yoga) । सिद्धि या सफलता प्राप्त करने के लिए यह अति आवश्यक है। ब्रह्मचर्य का पालन करना सर्वाधिक कठिन माना गया है।

ब्रह्मचर्य का अर्थ भी व्यापक है। आमतौर पर गुप्तेंद्रियों पर संयम रखना ही ब्रह्मचर्य माना जाता है जबकि ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ है उस एक ब्रह्म की चर्या या चरना करना। अर्थात उसके ही ध्यान में रमना और उसकी चर्चा करते रहना ही ब्रह्मचर्य है। समस्त इंद्रियों के संयम के अस्खलन को ही ब्रह्मचर्य कहते हैं। विचार करना भी ब्रह्मचर्य को खंडित करना माना जाता है।

शारीरिक लाभ : वीर्य की रक्षा से शरीर स्वस्थ, बलवान तथा स्फूर्तिवान बना रहता है। कामोत्तेजना विशुद्ध रूप से मानसिक प्रक्रिया है अत: मस्तिष्क में इसके सभी तरह के विचारो को रोक देने से मस्तिष्क शक्तिशाली और शांतिमय बनता है।

आध्यात्मिक लाभ : जो व्यक्ति सिद्धियां प्राप्त करना चाहता है यदि वह ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं कर पाता है तो कुण्डलिनी जागरण की अवस्था तक कतई नहीं पहुंच सकता। अत: इस व्रत के पालन से सिद्धियां प्राप्त होती है। ब्रह्मचर्य के पालन करने से व्यक्ति में जागरूकता का विकास होता है। साक्षी भाव गहराता है।-अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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