शून्य और सूर्य मुद्रा

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
शून्य मुद्रा हमारे भीतर के आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। मध्यमा अँगुली का संबंध आकाश से जुड़ा माना गया है। शून्य मुद्रा मुख्यत: हमारी श्रवण क्षमता को बढ़ाती है। सूर्य मुद्रा हमारे भीतर के अग्नि तत्व को संचालित करती है। सूर्य की अँगुली अनामिका को रिंग फिंगर भी कहते हैं। इस अँगुली का संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से है। सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंतर्ज्ञान और बदलाव का प्रतीक है।

(1) शून्य मुद्रा

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विधि : मध्यमा अर्थात शनि की अँगुली को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखते हैं। इसे शून्य मुद्रा कहते हैं।
लाभ : यह शरीर के सुस्तपन को कम कर स्फूर्ति जगाती है। प्रतिदिन चार से पाँच मिनट अभ्यास करने से कान के दर्द में आराम मिलता है। बहरे और मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए यह मुद्रा लाभदायक है।

(2) सूर्य मुद्रा

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विधि : सूर्य की अँगुली को हथेली की ओर मोड़कर उसे अँगूठे से दबाएँ। बाकी बची तीनों अँगुलियों को सीधा रखें। इसे सूर्य मुद्रा कहते हैं।
लाभ : इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट के लिए अभ्यास करने से शरीर का कोलेस्ट्रॉल घटता है। वजन कम करने के लिए भी इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है। पेट संबंधी रोगों में भी यह मुद्रा लाभदायक है। बेचैनी और चिंता कम होकर दिमाग शांत बना रहता है। यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हलका बनाती है।

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