पंच धारणा का अर्थ है पांच तरह की धारणा। योग में इन पांच धारणाओं का बहुत ही महत्व बताया गया है। इन धारणाओं को सिद्ध करने के लिए ध्यान का अभ्यास करना जरूरी है। इनके सिद्ध हो जाने से सभी कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
सावधानी- पंच धारणा मुद्रा को कुछ माह ध्यान और प्राणायाम के नियमित अभ्यास के बाद ही करना चाहिए।
पांच धारणा का परिचय-
1.पृथ्वी धारणा- इस धारणा के अंतर्गत मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाया जाता है।
2.जलीय धारणा- इस धारणा के अंतर्गत स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
3.आग्नेय धारणा- इस धारणा के अंतर्गत नाभि चक्र पर ध्यान लगाकर अभ्यास किया जाता है।
4.वायवीय धारणा- इस धारणा के अंतर्गत हृदय चक्र पर ध्यान लगाया जाता है।
5.आकाशीय धारणा- इस धारणा के अंतर्गत कण्ठकूप और भ्रूमध्य में अपना ध्यान लगाकर श्वास को अंदर रोककर रखें।
पंच धारणा मुद्रा विधि-
*सर्व प्रथम किसी भी सुखासन में बैठकर अपनी रीढ़ और गर्दन को सीधा करके आंखों को बंद कर लें।
*अब नाक के दोनों छिद्रों से श्वास को रोककर मूलबंध और जालंधर लगाते हुए मन को मूलाधार चक्र पर लगाकर कुंभक लगाकर रखें।
*यदि श्वास ना रोक पाएं तो मूलबंध और जालंधर बंध हटाते हुए आंखों को खोल लें।
*अब दोनों नाक के छेदों से श्वास को रोककर रखें इसे ही पृथ्वी धारणा मुद्रा कहते हैं।
*इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र और आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाते हुए कुंभक और रेचक की क्रिया का अभ्यास करें। इस तरह से पंचधारणा मुद्रा का एक चक्र पूरा हो जाता है।
इसका लाभ- पंच धारणा में का अभ्यास हो जाने पर व्यक्ति सिद्ध होने लगता है और इसके निरंतर अभ्यास से व्यक्ति बुढ़ापे और मृत्यु को जीत लेता है। इससे कुंडलिनी शक्ति का जागरण भी बहुत जल्दी होता है।