ब्रह्म मुद्रा के लाभ

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ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार। ब्रह्म शब्द का उपयोग परमेश्वर के लिए किया जाता है। ब्रह्म मुद्रा को मुद्रा, क्रिया और आसन की श्रेणी में रखा गया है। योग में इसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। पहले हम आसन की बात करें ।

ब्रह्म मुद्रा आसन : कुछ लोग इसे ब्रह्मा मुद्रा भी कहते हैं, क्योंकि इस आसन में गर्दन को चार दिशा में घुमाया जाता है और ब्रह्माजी के चार मुख थे इसीलिए इसका नाम ब्रह्मा मुद्रा आसन रखा गया। लेकिन असल में यह ब्रह्म मुद्रा आसन है और इसमें सभी दिशाओं में स्थित परमेश्वर को जानकर उसका चिंतन किया जाता है। नमाज पढ़ते वक्त या संध्या वंदन करते वक्त उक्त मुद्रासन को किया जाता रहा है।

कैसे करें : पद्मासन, सिद्धासन या वज्रासन में बैठकर कमर तथा गर्दन को सीधा रखते हुए गर्दन को धीरे-धीरे दायीं ओर ले जाते हैं। कुछ सेकंड दायीं ओर रुकते हैं, उसके बाद गर्दन को धीरे-धीरे बायीं ओर ले जाते हैं। कुछ सेकंड तक बायीं ओर रुककर फिर दायीं ओर ले जाते हैं। फिर वापस आने के बाद गर्दन को ऊपर की ओर ले जाते हैं, उसके बाद नीचे की तरफ ले जाते हैं। फिर गर्दन को क्लाकवाइज और एंटीक्लाकवाइज घुमाएँ। इस तरह यह एक चक्र पूरा हुआ। अपनी सुविधानुसार इसे चार से पाँच चक्रों में कर सकते हैं।

सावधानियां : जिन्हें सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस या थाइराइड की समस्या है वे ठोडी को ऊपर की ओर दबाएँ। गर्दन को नीचे की ओर ले जाते समय कंधे न झुकाएँ। कमर, गर्दन और कंधे सीधे रखें। गर्दन या गले में कोई गंभीर रोग हो तो योग चिकित्सक की सलाह से ही यह मुद्राआसन करें।

इस मुद्रा का लाभ : जिन लोगों को सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस, थाइराइड ग्लांट्स की शिकायत है उनके लिए यह आसन लाभदायक है। इससे गर्दन की माँसपेशियाँ लचीली तथा मजबूत होती हैं। आध्यात्मिक ‍दृष्टि से भी यह आसन लाभदायक है। आलस्य भी कम होता जाता है तथा बदलते मौसम के सर्दी-जुकाम और खाँसी से छुटकारा भी मिलता है।

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