सर्वांगासन

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सर्व अंग और आसन अर्थात सर्वांगासन। इस आसन को करने से सभी अंगों को व्यायाम मिलता है इसीलिए इसे सर्वांगासन कहते हैं। इ स आस न क ो पी ठ क े ब ल लेटक र किय ा जात ा है । इ स स्थित ि मे ं शरी र क ा वज न पूर्ण त: कंध े प र आ जात ा है।

विधि : पीठ के बल सीधा लेट जाएँ। पैर मिले हुए, हाथों को दोनों ओर बगल में सटाकर हथेलियाँ जमीन की ओर करके रखें। श्वास अन्दर भरते हुए आवश्यकतानुसार हाथों की सहायता से पैरों को धीरे-धीरे 30 डिग्री, फिर 60 डिग्री और अन्त में 90 डिग्री तक उठाएँ। 90 डिग्री तक पैरों को न उठा पाएँ तो 120 डिग्री पर पैर ले जाकर व हाथों को उठाकर कमर के पीछे लगाएँ।

वापस आते समय पैरों को सीधा रखते हुए पीछे की ओर थोड़ा झुकाएँ। दोनों हाथों को कमर से हटाकर भूमि पर सीधा कर दें। अब हथेलियों से भूमि को दबाते हुए जिस क्रम से उठे थे उसी क्रम से धीरे-धीरे पहले पीठ और फिर पैरों को भूमि पर सीधा करें। जितने समय तक सर्वांगासन किया जाए लगभग उतने समय तक शवासन में विश्राम करें।

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सावधानी : कोहनियाँ भूमि पर टिकी हुई हों और पैरों को मिलाकर सीधा रखें। पंजे ऊपर की ओर तने हुए एवं आँखें बंद हों अथवा पैर के अँगूठों पर दॄष्टि रखें। जिन लोगों को गर्दन या रीढ़ में ‍शिकायत हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए।

लाभ : थायराइड एवं पिच्युटरी ग्लैंड के मुख्य रूप से क्रियाशील होने से यह कद वृद्धि में लाभदायक है। दमा, मोटापा, दुर्बलता एवं थकानादि विकार दूर होते है। इस आसन का पूरक आसन मत्स्यासन है, अतः शवासन में विश्राम से पूर्व मत्स्यासन करने से इस आसन से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।

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