हलासन से बने रहें सदा जवान, दूर होता है सिरदर्द

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आसन परिचय : इस आसन में शरीर का आकार खेत में चलाए जाने वाले हल के समान हो जाता है। इसीलिए इस आसन को हलासन कहा जाता हैं।


 
सावधा‍नी: रीढ़ संबंधी गंभीर रोग अथवा गले में कोई गंभीर रोग होने की स्थिति में यह आसन न करें। आसन करते वक्त ध्यान रहे कि पैर तने हुए तथा घुटने सीधे रहें। स्त्रियों को यह आसन योग शिक्षक की सलाह पर ही करना चाहिए।
 
आसन लाभ : हलासन से हमारी रीढ़ सदा जवान बनी रहती है। मेरुदंड संबंधी ना‍ड़ियों के स्वास्थ रहने से वृद्धावस्था के लक्षण जल्दी नहीं आते। अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, दमा, सिरदर्द, कफ, रक्तविकार आदि दूर होते हैं। लीवर और प्लीहा बढ़ गए हो तो हलासन से सामान्यावस्था में आ जाते हैं।

आसन विधि :
स्टेप 1-शवासन की अवस्था में भूमि पर लेट जाएं। एड़ी-पंजे मिला लें। हाथों की हथेलियों को भूमि पर रखकर कोहनियों को कमर से सटाए रखें।

 
स्टेप 2-श्वास को सुविधानुसार बाहर निकाल दें। फिर दोनों पैरों को एक-दूसरे से सटाते हुए पहले 60 फिर 90 डिग्री के कोण तक एक साथ धीरे-धीरे भूमि से ऊपर उठाते जाएं। घुटना सीधा रखते हुए पैर पूरे ऊपर 90 डिग्री के कोण में आकाश की ओर उठाएं।
 
स्टेप 3-हथेलियों को भूमि पर दबाते हुए हथेलियों के सहारे नितंबों को उठाते हुए, पैरों को पीछे सिर की ओर झुकाते हुए पंजों को भूमि पर रख दें।
 
स्टेप 4-अब दोनों हाथों के पंजों की संधि कर सिर से लगाएं। फिर सिर को हथेलियों से थोड़-सा दबाएं, जिससे आपके पैर और पीछे की ओर खसक जाएंगे।
 
स्टेप 5-पुन: क्रमश: शवासन में लौट आएं अर्थात पहले हाथों की संधि खोलकर पुन: हथेलियों के बल पर 90 और फिर 60 डिग्री में पैरों को लाते हुए भूमि कर टिका दें।
 
अवधि/दोहराव:  इस आसन में 20-30 सेकंड तक रहा जा सकता है। धीरे-धीरे इस समय को सुविधानुसार बढ़ाया जा सकता है। इसे दो से तीन बार कर सकते हैं।
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