दुनिया के सबसे अमीर आदमी वॉरेन बफेट की बात मानें तो शेयर बाजार की गिरावट हरेक को निवेश का मौका देती है, जो भविष्य में आपको अमीर बनाती है, लेकिन दुनियाभर के शेयर बाजारों में इस समय जो गिरावट आई है, उसमें ऐसे चंद लोग ही हैं, जो निवेश कर रहे हैं।
इसलिए यह भी तय है कि भविष्य में चंद लोग ही आपको दुनिया में सबसे अमीर दिखाई देंगे। यह आम कहावत है कि मंदी में शेयर खरीदो और तेजी में बेचो, लेकिन ऐसा कहने वाले भी यह नहीं कर पाते।
अमेरिकी फैड रिजर्व ने ब्याज दर में 0.75 फीसदी और डिस्काउंट रेट में भी इतनी ही कमी की है। इस खबर से अमेरिकी शेयर बाजारों में खासा सुधार हुआ। इस उम्मीद पर भारतीय शेयर बाजारों का एक बड़े तेज गेप के साथ खुलना स्वाभाविक था, लेकिन यह ऊँचाई अंत तक कायम नहीं रही और बीएसई सेंसेक्स 161 अंक बढ़कर 15 हजार के नीचे ही बंद हुआ।
अनेक भारतीय इक्विटी विश्लेषक यह कह रहे हैं कि अब मंदी पूरी हो चुकी है और शेयर बाजार फिर से तेजी की ओर मुड़ेगा, लेकिन इसका भरोसा तो खुद अमेरिकियों को भी नहीं है। आज भी मार्क फैबर, जिम रोजर्स, जॉर्ज सोरास और वारेन बफेट तक अमेरिकी बैंक के इस कदम के बाद यह नहीं कह पा रहे हैं कि करेक्शन का दौर खत्म हो गया तो चंद घंटे पहले तक बाजार के सत्यानाश की भविष्यवाणी करने वाले आज सुबह से यह राग अलाप रहे हैं कि अब फिर तेजी।
कई विश्लेषक धड़ाधड़ यह सिफारिश कर रहे थे कि अमुक कंपनियों के शेयर खरीदो, हमारे लक्ष्य यह हैं, लेकिन वे खुद बिकवाल थे। यानी आम निवेशक को शेयर दिलवाओ और खुद बेच दो।
मार्क फैबर अमेरिका में 1973-74 की मंदी की बात करते हुए कहते हैं कि उस समय सभी ब्रोकर गिरावट के बावजूद तेजी में बने रहे, लेकिन जब 1974 के अंत में मंदी ने पूरी तरह बाजार को ढँक लिया तो कई ब्रोकरेज फर्म बाजार से बाहर हो गईं और न्यूयॉर्क में कई ब्रोकरों को जीवनयापन के लिए टैक्सी ड्राइवर बनना पड़ा। उनका मानना है कि एक बार फिर वही समय आ रहा है। फैबर के मुताबिक अमेरिका की स्थिति काफी गंभीर है।
पिछले कुछ दशकों की बात करें तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने 1974, 1981-82, 1987, 1990, 1998 और 2001 में मंदी के दौर देखे हैं, लेकिन कभी भी डिस्पोजेबल इन्कम के प्रतिशत के रूप में हाउस होल्ड रियल इस्टेट असेट और हाउसहोल्ड इक्विटी असेट के मूल्य में एक साथ कमी नहीं आई थी, इसलिए बाजार को कुशन मिलता रहा, लेकिन आज कहानी अलग है। शेयर और हाउसिंग, दोनों क्षेत्रों के टूटने से घरेलू संपत्ति पर दबाव पड़ा है। इस तरह की मंदी पहले नहीं देखी गई और इस स्तर पर तो कभी नहीं।
खैर! हम बात कर रहे थे वॉरेन बफेट के उसूल की। शेयर बाजार में मौजूदा गिरावट का मुख्य कारण अमेरिका का सबप्राइम संकट है, लेकिन इस संकट में जहाँ कई साफ हो गए, वहीं कुछ बनेंगे भी। यह समय नई खरीद का है, जहाँ आप वे ब्लूचिप शेयर खरीद सकते हैं, जो केवल दो महीने पहले खरीद क्षमता से बाहर हो चुके थे। लेकिन शर्त यह है कि इस निवेश पर मलाई पाने के लिए कुछ साल इंतजार करना पड़ेगा और खरीद करने से पहले पढ़ाई भी कि आप किस कंपनी के शेयर किन-किन आधारों पर खरीद रहे हैं।
जबरदस्त तेजी के समय जो निवेशक यह मान रहे थे कि शेयर बाजार में अब पैसा लगाना उनके बस की बात नहीं, असल में अब यह उनके ही बस में है। यह उन निवेशकों के लिए भी मौका है, जिन्होंने पहले ऊँचे भावों पर शेयर खरीदे हैं।
मान लीजिए कि 'ए' कंपनी का शेयर यदि आपने पहले सौ रुपए में खरीदा है और आज उसका भाव 50 से 55 रुपए है तो आपको उसमें और खरीदारी करनी चाहिए। जब आपने कुछ तथ्यों के आधार पर इस कंपनी का शेयर सौ रुपए में खरीदा और वे तथ्य जस के तस हैं तो फिर 50 से 55 रुपए में खरीदने में क्या खराबी है।
इससे दो फायदे हैं एक तो शेयर की खरीद कीमत कम हो गई और दूसरे नजरिये से देखें तो जब यह 50 से 55 रुपए में खरीदा गया शेयर थोड़ा भी बढ़ता है तो आप उस बढ़त का लाभ इस सस्ते वाले शेयर को बेचकर ले सकते हैं। कई बार भाव औसत देखने होते हैं और कई बार हर खरीद के भाव अलग-अलग। यह बाजार के रुझान पर निर्भर करता है।
मंदी के इस दौर में शेयर खरीदते समय यह जरूर ध्यान रखें कि पहली पसंद ब्लूचिप कंपनियों को ही बनाएँ क्योंकि जब भी बाजार में मंदी को लगाम लगती है तो सबसे पहले इन्हीं कंपनियों के शेयर चलते हैं और बड़े देसी व विदेशी निवेशक इनमें ही खरीद करते हैं।
मिडकैप और स्मालकैप कंपनियों के शेयर चलने में वक्त लगता है, इसलिए पहली खरीद ब्लूचिप कंपनियों के शेयरों की ही करें। मसलन रिलायंस इंडस्ट्रीज का शेयर जो जनवरी में 3200 रुपए पर बिक रहा था अब 2159 रुपए में मिल रहा है। तो फिर देर किस बात की बनाइए ऐसी ब्लूचिप कंपनियों की सूची और हर गिरावट पर करें खरीद भविष्य के वॉरेन बफेट बनने के लिए।
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