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आजादी का अमृत महोत्सव : हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी...

संदीपसिंह सिसोदिया
भारत कल, आज और कल लिखने में ये शब्द जितने सरल हैं इनके निहितार्थ पूरी जिम्मेदारी के साथ समेटना उतना ही चुनौतीपूर्ण है...

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी


मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियों से प्रेरणा लेते हुए, भारत की आजादी, स्वाधीनता, स्वतंत्रता के 75 साल के महोत्सव में शामिल होने के साथ हमने उठाया है बीड़ा 'भारत के कल, आज और कल' पर नीति-निर्माताओं, प्रखर विद्वानों और विषय विशेषज्ञों से बातचीत कर सार्थकता की कुछ बूंदें सहेजने का...

हमने भारत के जिम्मेदार, प्रतिनिधि, साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवियों से लेकर आम नागरिक से बात की।

हमने सरहद पार बैठे, मीलों दूर बैठकर भारत के नाम को चमकाते हमारे अप्रवासी भारतीय साथियों को भी टटोला कि वे क्या सोचते हैं...

'कल, आज और कल' इन तीन शब्दों के भीतर कैसे समेटते हैं भारत के अतीत की स्मृतियां, उपलब्धियां, वर्तमान की समस्याएं, संकट और समाधान, और क्या हैं उनकी नजर में भविष्य की संभावनाएं, चुनौतियां, विश्वास और संकल्प...

वर्तमान की धरा पर खड़े होकर अतीत के गौरव को समेटते हुए भविष्य की संभावनाओं पर नजर डाली है देश-विदेश में बसे उन भारतीय चिंतकों ने जिनका दिल धड़कता है सिर्फ और सिर्फ भारत के नाम पर...

सवाल यह भी था कि जो बीत गया है उसका गान जरूरी है क्या? जवाब था हां, जरूरी है अपनी जड़ों को सींचने के लिए अपने वैभवशाली अ‍तीत और आजादी पाने के लिए खून के कतरे-कतरे को देश पर कुर्बान करने वाले हर उस शख्स को नमन किया जाए जिनकी वजह से हम देख पा रहे हैं आजादी का 75 वर्षीय सूर्य....आने वाला क्षितिज मंगलकारी हो, हमारा आज गौरवशाली हो इसलिए जरूरी है अपने इतिहास, धरोहर और विरासत पर ठहर कर सोचना, चिंतन करना, तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ी को समझा सकेंगे आजादी का मतलब....

देश-विदेश से हमें मिले तेजस्वी विचार, ओजस्वी चिंतन और गहन मंथन के वे बिंदु जिन्हें हमने इन्हीं तीन भागों में विभाजित किया है भारत : कल आज और कल.... हम क्या थे, क्या हैं और क्या होंगे, हो सकते हैं, होना चाहिए.... हम आशा की किरण के साथ थमा रहे हैं कि अमिट दस्तावेज आने वाली पीढ़ी को ताकि वे जानें हमारे कल को, वे सहेजें हमारे आज को और संवारे अपने भविष्य को.... इस देश के लिए, इस देश में रहकर, इस देश के कारण...

इस समय आजादी का अमृत महोत्सव हम मना रहे हैं कल आज और कल की समन्वित विचारमाला के साथ... हमें पूरी उम्मीद है कि भारत के प्रतिष्ठित विद्वानों, सुधीजनों की इन बातों से संप्रदाय, धर्म, जाति और अलगाव का हर विष दूर हो, युवा पीढ़ी के मानस सुघड़ सुगठित सुंदर सोच के साथ पोषित हों, यही शुभ भावनाएं है, शुभकामनाएं है...

बीते पल की बात करें हम, जो लौट कर नहीं आने वाला,
आज खड़ा है साथी बनकर, वह भी है जाने वाला।
बात करें चलो उस पल की जो कल रोशन हो जाएगा 
उम्मीदों के जगमग जगमग दीप जलाकर जाएगा...

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