जंगे आजादी में भी थी गोरक्षपीठ की महत्वपूर्ण भूमिका

गिरीश पांडेय
Role of Gorakshpeeth in freedom movement: लगभग सौ वर्षों के दौरान भारतीय इतिहास की हर महत्वपूर्ण घटना में गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वाभाविक रूप से इन वर्षों में जो भी पीठ का पीठाधीश्वर रहा उसने देश के इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। नाथ पंथ का मुख्यालय मानी जाने वाली इस पीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के भी हैं। 
 
जंगे आजादी जब चरम पर थी, तब योगी आदित्यनाथ के दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर थे। वह चित्तौड़ (मेवाड़) के ठिकाना कांकरवा में पैदा हुए थे। पर, 5 साल की उम्र में गोरखपुर आए तो यहीं के होकर रह गए। यकीनन देश भक्ति का जोश, जज्बा और जुनून उनको मेवाड़ की उसी माटी से मिली थी जहां के राणा प्रताप ने अपने समय के सबसे ताकतवर मुगल सम्राट के आगे तमाम दुश्वारियों के बावजूद घुटने नहीं टेके।
 
प्रताप का संघर्ष उनकी विरासत में शामिल तो था ही, किशोरवय होते दिग्विजयनाथ पर आजादी को लेकर महात्मा गांधी के आंदोलन का भी काफी प्रभाव था। नतीजा दिग्विजयनाथ भी जंगे आजादी में कूद पड़े। उन्होंने जंगे आजादी के लिए जारी क्रांतिकारी आंदोलन और गांधीजी के नेतृत्व में जारी शांतिपूर्ण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक ओर जहां उन्होंने समकालीन क्रांतिकारियों को संरक्षण, आर्थिक मदद और अस्त्र-शस्त्र मुहैया कराया, वहीं गांधीजी के आह्वान वाले असहयोग आंदोलन के लिए स्कूल का परित्याग कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम के दोनों तरीकों में शामिल रहने का उनका एकमात्र उद्देश्य था कि चाहे जैसे मिले पर देश को आजादी मिलनी चाहिए।
चौरीचौरा जनक्रांति (चार फरवरी 1922) के करीब साल भर पहले आठ फरवरी 1921 को जब गांधीजी का पहली बार गोरखपुर आगमन हुआ था, वह रेलवे स्टेशन पर उनके स्वागत और सभा स्थल पर व्यवस्था के लिए अपनी टोली स्वयंसेवक दल के साथ मौजूद थे। नाम तो उनका चौरीचौरा जनक्रांति में भी आया था, पर वह ससम्मान बरी हो गए। देश के अन्य नेताओं की तरह चौरीचौरा जनक्रांति के बाद गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन के सहसा वापस लेने के फैसले से वह भी असहमत थे।
 
बाद के दिनों में मुस्लिम लीग को तुष्ट करने की नीति से उनका कांग्रेस और गांधीजी से मोह भंग होता गया। इसके बाद उन्होंने वीर सावरकर और भाई परमानंद के नेतृत्व में गठित अखिल भारतीय हिंदू महासभा की सदस्यता ग्रहण कर ली। जीवनपर्यंत वह इसी में रहे। उनके बारे में कभी सावरकर ने कहा था कि यदि महंत दिग्विजयनाथ की तरह अन्य धर्माचार्य भी देश, जाति और धर्म की सेवा में लग जाएं तो भारत पुनः जगतगुरु के पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है।
 
पीठ की देशभक्ति के जज्बे का प्रतीक है महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद : ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराण प्रताप से कितने प्रभावित थे, इसका सबूत 1932 में उनके द्वारा स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद है। इस परिषद का नाम महाराणा प्रताप रखने के पीछे यही मकसद था कि इसमें पढ़ने वाल विद्यार्थियों में भी देश के प्रति वही जज्बा, जुनून और संस्कार पनपे जो प्रताप में था। इसमें पढ़ने वाले बच्चे प्रताप से प्रेरणा लें। उनको अपना रोल मॉडल मानें। उनके आदर्शों पर चलते हुए यह शिक्षा परिषद 4 दर्जन से अधिक संस्थाओं के जरिए विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की अलख जगा रही है। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

Punjab floods : 4 दशक की सबसे भीषण बाढ़ से जूझता पंजाब, 2.56 लाख लोग चपेट में, 29 की मौत, पानी में बहते पशु, छतों पर टेंटों में गुजरती रातें, क्यों जलमग्न है 'रोटी की टोकरी'

मोदी जी 'तेरे नाम' के सलमान की तरह हमेशा रोते रहते हैं, प्रियंका गांधी ने ऐसा क्यों कहा

iPhone 17 की लॉन्च की तारीख का ऐलान, भारत में क्या रहेगी कीमत, iPhone 17 Air, iPhone 17 Pro और iPhone 17 Pro Max भी किए जाएंगे पेश

Semicon India 2025 में पहली ‘मेड इन इंडिया’ Vikram 32-bit chip चिप लॉन्च़ खूबियां जानेंगे तो गर्व से चौड़ा हो जाएगा सीना

पीएम मोदी की बात सुन भावुक हुए बिहार बीजेपी अध्यक्ष, दिलीप जायसवाल के छलके आंसू

सभी देखें

नवीनतम

Jammu Kashmir Rain : भारी बारिश के कारण सीमा पर तारबंदी कई जगह बह गई, घुसपैठ का खतरा बढ़ा

पीएम मित्रा पार्क में निवेश पर दिल्ली में आज CM डॉ. मोहन यादव उद्योगपतियों से करेंगे वन-टू-वन मीटिंग

GST परिषद की बैठक से पहले Share Bazaar में आई तेजी, शुरुआती कारोबार में Sensex और Nifty रहे बढ़त में

भाजपा विधायक संजय पाठक ने अवैध रेत खनन से जुड़े केस में हाईकोर्ट जज को लगाया फोन, सुनवाई से हटे जस्टिस विशाल मिश्रा

LIVE: GST परिषद की बैठक आज से, दो स्लैब पर लग सकती है मुहर

अगला लेख