84 महादेव : श्री इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव(15)

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कलकलेश्वर देवस्य समीपे वामभागतः।
लिंगपापहरं तत्र समाराधय यत्नतः।।
श्री इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव की स्थापना की कथा शुभ एवं निष्काम कर्म करने एवं पुण्यार्जन का महत्व बताती है। प्रस्तुत कथा यह दर्शाती है कि पृथ्वी पर शुभ कर्म करने से ही कीर्ति एवं स्वर्ग संभव है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक इन्द्रद्युम्न नाम का राजा था। राजा ने पृथ्वी लोक में अपने जीवन कल में कई निष्काम सुकर्म किए जिसके फलस्वरूप राजा को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। लेकिन कुछ समय पश्चात जब राजा का पुण्य क्षीण हुआ तब राजा पुनः पृथ्वी पर आ गिरा। तब वह शोकसंतप्त हुआ और उसे यह ज्ञात हुआ कि स्वर्ग का वास केवल पुण्य का संचय रहने तक ही मिलता है। पृथ्वी लोक पर किए गए शुभ कर्म ही स्वर्गकारक होते हैं। अच्छे कर्मो से ही पुण्य का अर्जन होता है एवं मनुष्य की कीर्ति पुण्य प्रभाव से पृथ्वी पर रहती है। वहीं दूसरी तरफ बुरे कर्म करने पर निंदा होती है एवं दुःख भोगना पड़ता है। 

यह ज्ञात होते ही राजा पुनः तपस्या करने का निश्चय कर हिमालय पर्वत की ओर चल दिया। वहां राजा को महामुनि मार्कण्डेय ऋषि मिले। राजा ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि कौन सा तप करने से स्थिर कीर्ति प्राप्त होती है। मुनि ने राजा से कहा कि राजन! महाकाल वन जाओ। वहां कलकलेश्वर लिंग के पास ही एक दिव्य लिंग है, उसके पूजन अर्चन करने से अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है।
 
तब राजा महाकाल वन पहुंचा और वहां स्थित उस दिव्य लिंग का पूजन अर्चन किया। तब देवता, गन्धर्व आदि राजा की प्रशंसा करने लगे और राजा से कहने लगे कि इस महादेव के पूजन से तुम्हारी कीर्ति निर्मल हो गई है। आज से तुम्हारे नाम से ही यह लिंग इन्द्रद्युम्नेश्वर के नाम से पहचाना जाएगा।
 
दर्शन लाभ:
मान्यतानुसार जो भी व्यकि श्री इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव के दर्शन करेगा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। वह कीर्ति और यश को प्राप्त होगा एवं उसके पुण्य में वृद्धि होगी। उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक श्री इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव मोदी की गली में स्थित है। 

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