सूर्य के तेज को न सहन कर पाने के कारण उनकी पत्नी संज्ञा उन्हें छोड़ कर चली गईं और तप करने लगीं। यह बात सूर्य को पता चली तो वे कुरूक्षेत्र पहुंच गए। यहां संज्ञा को सूर्य ने घोड़ी के रूप में देखा। तब वह भगवान के सामने गईं और नासिका से अश्विनी कुमार नामक घोड़े के मुख वाले पुत्र को जन्म दिया। रेत से रेवन्त पुत्र खड्ग और तलवार लेकर उत्पन्न हुआ। बाल्य काल में ही उसने तीनों लोक जीत लिए। सभी देवता घबरा कर ब्रह्मा की शरण में गए। ब्रह्मा ने सभी देवताओं को शिवजी के पास भेज दिया।
देवताओं ने शिवजी से कहा कि अश्विनी कुमार के तेज के कारण सारी सृष्टि जल रही है। आप उनकी रक्षा करें। शिवजी ने अश्विनी कुमार का स्मरण किया और अश्विनी कुमार शिवजी के पास आ गया। शिवजी ने प्यार से उसे गोद में बैठाया और उससे कहा कि तुम महाकाल वन में कंटेश्वर के पूर्व में स्थित एक उत्तम लिंग है और तुम उसका पूजन और दर्शन करो और वहीं निवास करो। देवता तुम्हारा पूजन करेंगे और तुम राजाओं के राजा होगे। अश्विनी कुमार शिवजी की आज्ञा से महाकाल वन में आया और वहां आकर शिवलिंग का पूजन किया। रेवन्त के पूजन के कारण शिवलिंग रेवन्तेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो मनुष्य इस शिवलिंग के दर्शन कर पूजन करता है उसकी 7 पीढियों को सुख मिलता है तथा अन्त काल में स्वर्ग में वास करता है।