व्यापार 2011 : अर्थजगत के लिए बुरा सपना

नृपेंद्र गुप्ता
साल 2011 अपने अंतिम पड़ाव पर है और दुनिया 2012 के स्वागत को आतुर है। वर्ष 2011 पर एक नजर डालें तो अर्थजगत को इस साल ने बेहद परेशान किया है। निवेशक हैरान हैं, व्यापारी परेशान, आम आदमी की तो हालत ही खस्ता है।

आम आदमी के लिए लोन लेना महंगा हुआ है और बचत मुश्किल। आर्थिक मंदी एक बार फिर दरवाजा खटखटाने लगी है। 2008 की स्थिति दोहराने संबंधी आशंका के चलते निवेशक अपना पैसा निकालने के बारे में विचार कर रहे हैं। एविएशन इंडस्ट्री संकट में है, ऑटोमोबाइल सेक्टर इस साल को कभी याद नहीं करना चाहेगा। महंगाई के सरकारी आंकड़े भी मानों गरीब जनता को जी भर कर छलने पर आमादा हैं। सभी चाहते हैं कि नया साल नया सवेरा लेकर आए।

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*शेयर बाजार के हाल बेहाल- देश में आर्थिक विकास की धीमी पड़ती रफ्तार से निवेशकों को 2011 ने निराश किया। दिवाली पर सेंसेक्स 18 हजारी था पर साल खत्म होते-होते यह 15 हजार पर आ गया। यह पिछले 28 महीनों में सेंसेक्स का न्यूनतम स्तर है। निफ्टी भी लुढ़कते-लुढ़कते 4600 पर पहुंच गया। सारे ही घटक बाजार को नकारात्मक दिशा में धकेल रहे हैं। बाजार में गिरावट से न केवल बड़ी कंपनियां प्रभावित हुईं, बल्कि छोटे शेयरों पर उतार-चढ़ाव की मार ज्यादा पड़ती नजर आई। मिड कैप कंपनियों में तो निवेश भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। निवेशक हैरान है उन्हें समझ नहीं आ रहा है की बाजार में बने रहे, गिरते बाजार का फायदा उठाए या घाटे में पैसा निकालकर बाहर हो जाए।

*सालता रहा महंगाई का दर्द : 2011 में महंगाई पर सरकारी आंकड़ों का सच भी सामने आ गया। एक ओर जनता महंगाई से परेशान रही वहीं सरकारी आंकड़े कह रहे थे कि खाद्य वस्तुओं से दाम तेज‍ी से कम हो रहे हैं। सरकार के अनुसार खाद्य वस्तुओं के दाम आंकड़ों में दहाई अंकों से कम होकर मात्र 0.42 प्रतिशत के स्तर पर आ गई पर आम आदमी तो अभी भी बाजार से महंगे भाव में ही खाने का सामान खरीद रहा है। सरकार के अनुसार महंगाई का यह छह वर्ष का निम्नतम स्तर है।

*पेट्रोल के बढ़ते दाम से निकली आम आदमी की जान : पिछले साल की तरह इस साल भी तेल के खेल में आम आदमी की हालत पस्त कर दी। पेट्रोल के दाम पर सरकारी नियंत्रण खत्म होने का फैसला 2010 में हुआ था पर इसके सही मायने 2011 में पता चले। कंपनियों ने अलग-अलग कारणों से इसके दाम बढ़ाती चली गई। हालांकि साल के अंत में तीन बार इसके दाम तीन बार कम किए गए जो महंगाई के दौर में जनता के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान थे। डीजल और रसोई गैस के दाम भी इस साल बढ़ाए गए।

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*रेपो दर, रिवर्स रेपो दर से महंगा हुआ लोन : 2010 की तरह ही 2011 में भी रिजर्व बैंक महंगाई में आंकड़ों में उलझा रहा। मार्च 2010 के बाद उसने महंगाई पर नियंत्रण के लिए लगातार 13 बार रेपो दर, रिवर्स रेपो दर और सीआरआर में बढ़ोतरी की। केंद्रीय बैंक के इस कदम से आम आदमी का लोन लेकर घर बनाने का सपना भी टूट गया। एक तरफ वस्तुओं के बढ़ते दाम से जनता परेशान हुई वहीं लोन की बढ़ती दरों ने उसका जीना और दुष्वार कर दिया। आरबीआई के प्रयासों से सरकार साल के अंत तक कागजों पर तो महंगाई पर नियंत्रण स्थापित कर ही लिया।

*यूरो संकट से दुनिया परेशान : ग्रीस से शुरू हुए कर्ज संकट ने विश्वव्यापी मंदी की आशंका पैदा कर दी। यूरोपियन संघ इस संकट से निपटने के लिए कवायद में व्यस्त रहा। ब्रिटेन द्वारा किनारा कर लिए जाने के बाद यूरोजोन को जर्मनी और फ्रांस ने उबारने की कोशिश तेज की। रही-सही कसर अमेरिकी मंदी की खबरों ने पूरी कर दी। अमेरिका, भारत सहित कई देशों के स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की कीमतें 2008 की मंदी के बाद सबसे निचले स्तर तक चली गईं।

*डॉलर ने निकाली रुपए की जान : पहले से मंदी का संकट झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार पड़ी है। 15 दिसंबर का दिन तो इतिहास में अपना नाम दर्ज करा गया। इस दिन रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले अब तक के निम्न स्तर पर आ गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया अमेरिकी मुद्रा की तुलना में 46 पैसे लुढ़ककर 54.32 रु प्रति डॉलर पर आ गया। इस वर्ष अब तक रुपया डॉलर के मुकाबले 17 प्रतिशत कमजोर हो चुका है।

*एविएशन इंडस्ट्री की हालत पतली : महंगे हवाई ईंधन, कड़ी प्रतिस्पर्धा और यात्रियों की संख्या में कमी के कारण 2011 में विमानन इंडस्ट्री की हालत पतली ही रही। रुपए के गिरते मूल्य ने भी एविएशन इंडस्ट्री की नाक में दम कर दिया। देश की प्रमुख एयरलाइंस भारी घाटे में चल रही हैं। शेयर बाजार में एफडीआई का इन कंपनियों से मोह भंग हो रहा है। बीएसई में सूचीबद्ध तीनों कंपनियों (जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलाइंस और स्पाइसजेट) से एफडीआई तेजी से पैसा निकाल रहे है। करों का बोझ सहन नहीं हो रहा है, घाटा बढ़ता जा रहा है और कंपनियां धीरे-धीरे दिवालिया होने की कगार पर पहुंच रही हैं। किंगफिशर समेत कई कंपनियों को घाटे के कारण अपनी उड़ाने रद्द करनी पड़ी।

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*ऑटो मोबाइल सेक्टर नहीं रखेगा याद : वाहन उद्योग के लिए 2011 की शुरुआत जोरदार तरीके से हुई। लेकिन यह सिर्फ कुछ समय के लिए था। 2011 का अंत आते-आते यह कार उद्योग के लिए सबसे खराब वर्षों में एक साबित हुआ। देश की प्रमुख कार कंपनी मारुति सुजुकी तो श्रमिकों की हड़ताल से प्रभावित रही ही, जनरल मोटर्स और एमआरएफ भी बुरी खबरों की वजह से चर्चा में रहीं।

कारों की बिक्री में भारी कमी आई। अक्टूबर में तो कारों की बिक्री में पिछले 11 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई। इस साल बीएम मुंजाल की अगुवाई वाले हीरो समूह ने जापान की होंडा के अलग होने के बाद अपनी नई ब्रांड पहचान स्थापित की।

*2जी घोटाले ने किया उद्योगजगत को परेशान : टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सिलसिले में सीबीआई ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी सहित कॉरपोरेट जगत की कई हस्तियों का साल ही बेकार कर दिया। 2011 में ये सभी खुली हवा में सांस लेने को तरस गए। इस मामले में अंगुली रतन टाटा पर भी उठी। हालांकि कनिमोझी समेत 12 आरोपी तो जमानत मिलने से 2011 की विदाई का जश्न घर में मना सकेंगे पर राजा अभी भी जेल में ही है।

*सोना चांदी का खेल : 2010 में सोने-चांदी की चमक से आंखे चौंधिया गई थी लेकिन इस बार इन दोनों ही धातुओं ने तेजी का वह दौर देखा कि यह आम आदमी की नजरों से ही दूर हो गई। सोने के दाम 2011 के दौरान 20,700 रुपए से बढ़कर 29,000 रुपए प्रति दस ग्राम से भी ऊपर निकल गया। सोने की जोरदार तेजी के कारण इसके वायदा कारोबार में खासी बढ़ोतरी हुई है। चांदी तो तेजी के मामले में सोने से भी आगे निकल गई। उसने इस साल 72 हजार के आंकड़े को छुआ। साल के अंतिम माह में गिरकर फिर 49 हजार के आसपास पहुंच गई। इस तरह इन 12 माहों में इसमें लगभग 27 हजार हजार रुपए का उछाल और 23 हजार की गिरावट देखी गई। उतार चढ़ाव के इस खेल में आम निवेशक की कमर ही टूट गई।

*टाटा को मिला उत्तराधिकारी : 2011 में रतन टाटा को आखिरकार अपना उत्तराधिकारी मिल ही गया। अरब डॉलर (4000 अरब रुपए) से अधिक का कारोबार कर रहे टाटा ग्रुप की कंपनियों की होल्डिंग कंपनी टाटा संस ने टाटा के उत्तराधिकारी के रूप में साइरस मिस्त्री के नाम की घोषणा की। 43 वर्षीय मिस्त्री सापुर्जी पल्लोनजी समूह के प्रबंध निदेशक हैं, जो 2012 में टाटा संस के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभालेंगे।

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