व्यापार 2014 : निराशा के बादल छंटे, उम्मीदें आसमान पर...

नृपेंद्र गुप्ता
जब 2014 की शुरुआत हुई थी तो आर्थिक जगत में निराशा का माहौल था। सरकार हताश, व्यापारी निराश और आम आदमी बेबस... चारों और केवल महंगाई, परेशानी और संघर्ष ही नजर आ रहा था। 2014 ने भारतीय व्यापार जगत को निराशा के भंवर से निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
 
इस साल पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए, महंगाई घटी, नौकरियों की बहार आई, निवेशकों को यहां की परिस्थितियों ने रिझाया और मोदी का जादू मेक इन इंडिया से होते हुए मेड इन इंडिया तक जा पहुंचा। दिसंबर में जब हम 2014 को विदाई दे रहे हैं तो व्यापार जगत में चारों ओर सकारात्मकता की लहर दिखाई दे रही है। 
 
2008 में आई आर्थिक मंदी से इस साल दुनिया पुरी तरह उबर गई। अमेरिका और यूरोप फिर दमदारी के साथ विश्व व्यापार जगत पर दबदबा कायम रखने में सफल रहे। निवेशकों में विश्वास बहाल हुआ और वे फिर नए निवेश स्थलों की खोज में निकल गए। 
 
हालांकि इस साल सोना-चांदी की स्थिति डांवाडोल दिखी। हालांकि आर्थिक प्रतिबन्ध लागू किए जाने का रूसी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। तेजी से रफ्तार पकड़ते बाजार में बड़े-बड़े लाल निशान भी देखे गए। रुपए ने तेजी की राह पकड़ी पर साल खत्म होते-होते 2013 स्तर पर ही जा पहुंचा। थोक मुद्रास्‍फीति शून्य तक चली गई लेकिन रिटेल में इसका ज्यादा असर नहीं देखा गया।
 

 मेड इन इंडिया से मेक इन इंडिया का सफर : इस साल व्यापार जगत को प्रधानमंत्री मोदी ने दो बड़े मंत्र दिए। एक मेड इन इंडिया और दूसरा मेक इन इंडिया। मेड इन इंडिया ने देश के कारोबारियों में एक नई शक्ति का संचार किया तो मेक इन इंडिया के सहारे विदेशियों को लुभाया गया। दोनों ही मंत्रों ने देश के युवा वर्ग को ऊर्जा से भर दिया। मोदी ने लगभग हर राज्य में छिपी खूबी को पहचाना और उसे सही मंच पर हाईलाइट भी किया। इससे रोजगार के नए अवसरों का सृजन हुआ। इतना ही नहीं सरकार का जोर स्‍कील डेवलपमेंट पर भी रहा। 
 
मोदी ने विदेश में मिले हर मौके का देश के लिए भरपूर दोहन किया। अपनी विदेश यात्राओं में निवेश की अपील करते हुए मोदी ने भारत का पक्ष न सिर्फ मजबूती से रखा बल्कि वहां से भारी मात्रा में निवेश भी हासिल किया। भारत में विदेशी निवेशकों में निवेश की ऐसी ललक पिछले कई दशकों में नहीं देखी गई।
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महंगाई कम, आम आदमी को राहत नहीं : देश में मोदी सरकार के गठन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड के दाम कम होने से देश में महंगाई का असर कम हुआ। पेट्रोल पिछले पांच माह में 8 बार और डीजल तीन माह में चार बार सस्ता हुआ। हालांकि पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने का बहुत ज्यादा फायदा आम आदमी को नहीं हुआ। न तो यात्री किराए में बहुत ज्यादा कमी आई, न ही माल भाड़े में। उलटा रेलवे ने किराया बढ़ा दिया। सरकार के साथ ही उद्योगपतियों ने भी मुनाफाखोरी का रास्ता अपनाया और आम आदमी ठगा सा रह गया।
 
हालांकि कागजों पर महंगाई में भारी कमी दर्ज की गई। थोक मुद्रास्फीति तो साल खत्म होने तक शुन्य तक जा पहुंची। आंकड़ों में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर में भी अच्छी गिरावट दर्ज की गई है। महंगाई दर में आई गिरावट के बाद भी रिजर्व बैंक ने आम आदमी को ब्याज दर में कोई राहत नहीं दी।
 
गेहूं, चावल से लेकर दाल और शकर तक सभी दूर आम आदमी संघर्ष करता दिखाई दिया। महंगाई भले ही कम न हुई हो पर 2014 में महंगाई पर चर्चा जरूर कम हो गई। साल का अंत होते-होते टीवी और समाचार पत्रों में यह मुद्दा गौण हो गया। हालांकि आने वाले महीनों में महंगाई में फिर बढ़ोतरी हो सकती है। 
 
निवेश को बढ़ावा, जनधन से जुगाड़ : मोदी के पीएम बनने के बाद से यह सवाल उठने लगा था कि उनके सपने बड़े हैं और सरकार का खजाना खाली। वह सपनों को पूरा करने के लिए पैसे कहां से लाएंगे। मोदी ने इसके लिए भी तरीका ढूंढ निकाला। उन्होंने निवेश के नए तरीके ईजाद किए। बैंकिंग नीति में बदलाव किया गया। टैक्स में छूट देकर बचत को प्रोत्साहित किया। गरीबों के पैसे को बाजार में लाने के लिए जनधन योजना चालू की। 
 
जनधन योजना में बैलेंस संबंधी कोई शर्त नहीं होने से इसे गरीबों की ओर से बेहतर प्रतिसाद मिला। हर परिवार में एक बैंक खाता हो, इस दिशा में यह एक बड़ा कदम साबित हुआ और देखते ही देखते इस योजना के तहत खुले खातों में अरबों रुपए जमा हो गए। आखिरकार पीएम मोदी को भी कहना पड़ा... 'अमीरों की अमीरी तो बहुत देखी, गरीबों ने भी दिखा दी अमीरी।' 
 
जनधन योजना पर मोदी सरकार की इस बात को लेकर आलोचना की जाती है कि यूपीए की गरीब खाता योजना को रिलांच किया गया है। 2014 में आधार की अनिवार्यता को खत्म किया गया, लेकिन निलेकणी से पीएम मोदी की बात के बाद योजना जारी रखने का निर्णय लिया गया।
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शिखर पर शेयर बाजार : शेयर बाजार के लिए 2014 बेहद शानदार रहा। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंचे। एफडीआई का इस मार्केट पर स्नेह बना रहा तो वहीं दूसरी ओर मोदी की निवेश अपीलों से प्रभावित यह बाजार दिन-प्रतिदिन नए कीर्तिमान गढ़ता रहा।
सेंसेक्स ने पिछले पांच सालों में सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हुए 2014 में 6,000 अंक से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

सेंसेक्स 28 हजार के पार दिखाई दे रहा है तो निफ्टी भी साल के अंत में आठ हजार से ऊपर मजबूती से खड़ा है।
 
साल 2014 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजारों में 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया, जिससे उनका सकल शुद्ध निवेश 10 लाख करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया।
 
हालांकि दिसंबर में उच्च स्तर पर बाजार में कुछ लड़खड़ाहट देखी गई। अंतिम सप्ताहों में सेंसेक्स में इस वर्ष की एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई। निफ्टी में भी निवेशकों में कुछ घबराहट देखी गई लेकिन जल्द ही बाजार इन सभी स्थितियों में मजबूती से उबर गया। बाजार से जुड़े लोगों का मानना है कि बाजार तरक्की कर रहा है पर उसमें वॉल्यूम कम है। छोटे निवेशकों में अब भी घबराहट का माहौल है। 
 
एनएसईएल का 5,600 करोड़ रुपए का भुगतान घोटाला सामने आने के बाद 2014 में जिंस एक्सचेंज कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ और वर्ष के दौरान यह घटकर आधा यानी 65 लाख करोड़ रुपए रह गया। 2015 में बाजार उम्मीद करेगा कि इन लोगों का बाजार में विश्वास फिर बहाल हो।
 
योजना आयोग खत्म, नए साल में नई संस्था : 2014 को योजना आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्था को खत्म करने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। अपने 65 साल के इतिहास में 200 लाख करोड़ रुपए से अधिक की बारह पंच-वर्षीय और छह सालाना योजनाएं शुरू करने वाला योजना आयोग अब खुद इतिहास में सिमटने जा रहा है। सरकार ने इसे खत्म करने की घोषणा कर दी है और इसकी जगह पर 2015 में एक नई आधुनिक संस्था के गठन की योजना है।
 
योजना आयोग के रूप में चर्चित यह संस्थान मार्च 1950 में एक साधारण सरकारी प्रस्ताव के जरिए गठित किया गया था। इसने कई राजनीतिक एवं आर्थिक उतार-चढ़ाव देखे और कई बार विवादों का केंद्र भी रहा। गरीबी का आकलन, खुद की इमारत में शौचालय मरम्मत पर मोटे खर्च व पिछले उपाध्यक्ष की विदेश यात्राओं के खर्च को लेकर इससे जुड़ी कुछ ऐसी चर्चाएं हैं जो आने वाले समय में भी याद की जा सकती हैं। 2014 में हुए आम चुनाव के निर्णायक जनादेश ने मानो योजना आयोग की भूमिका की आखिरी इबारत लिख दी। 
 
उम्मीद है कि 2015 में गठित होने वाला योजना आयोग आम उम्मीदों पर खरा उतरेगा और देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। 
पेट्रोल-डीजल ने दी राहत, डीजल भी नियंत्रण मुक्त

पेट्रोल-डीजल ने दी राहत, डीजल भी नियंत्रण मुक्त : क्रूड ऑइल के पिछले पांच साल के न्यूनतम स्तर पर आने के कारण इस साल आम आदमी को सबसे ज्यादा राहत पेट्रोल और डीजल के घटते दामों से ही मिली। पेट्रोल की कीमत चार साल और डीजल के दाम डेढ़ साल पुराने स्तर पर पहुंच गए। 
 
2013 में पेट्रोल नियंत्रण मुक्त हुआ था तो 19 अक्टूबर 2014 को डीजल का नियंत्रण मुक्त होना भी बड़ी खबर रही। डीजल के नियंत्रण मुक्त होने के बाद आम आदमी को इसका खासा फायदा हुआ और इसके दाम तेजी से कम हुए। 
 
हालांकि सरकार ने टैक्स बढ़ाकर दाम को उतना कम नहीं होने दिया जितना उसे होना चाहिए था। केंद्र सरकार के साथ ही कई राज्य सरकारों ने वैट बढ़ाकर इसके दाम घटने की राह में रोड़े अटकाए। कई जगह पेट्रोल पंपों ने भी अपने कमीशन में वृद्धि की।
 
विदेशी निवेश : विदेशी निवेश के लिहाज से भारत के लिए यह साल बेहद खास रहा। पीएम मोदी ने सार्क से लेकर जी20 तक और ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक माहौल को भारतमय कर दिया। निवेशकों को रिझाने के लिए सौगातों की बौछार कर दी गई। वीजा प्रक्रिया आसान कर दी गई और उद्योग डालने के लिए नियमों का सरलीकरण किया गया। इससे देश में विदेशी निवेश बढ़ा। 
 
इस साल अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब 1.05 लाख करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश शेयर बाजारों में किया, जबकि ऋण बाजारों में उनका निवेश 1.6 लाख करोड़ रुपए रहा। इस प्रकार उनका कुल निवेश 2.6 लाख करोड़ रुपए (43.4 अरब डॉलर) का रहा।
 
वैश्विक परामर्श फर्म पीडब्ल्यूसी के मुताबिक, 2014 में देश में विलय व अधिग्रहण गतिविधि इससे पिछले साल की तुलना में नौ प्रतिशत बढ़ी और इस दौरान कुल 28.7 अरब डॉलर मूल्य के 800 विलय एवं अधिग्रहण सौदे दर्ज किए गए।
 
एविएशन इंडस्ट्री में बहार, लड़खड़ाया स्पाइसजेट : एविएशन इंडस्ट्री के लिए 2014 जितना सुखद रहा उतना ही यह वर्ष स्पाइसजेट के लिए तकलीफदेह। इस साल यह इंडस्ट्री 14 प्रतिशत की प्र‍गति करते हुए दुनिया के पांच प्रमुख शहरों में शुमार रही। इसमें भी 30 प्रतिशत ट्राफिक नॉन मेट्रो शहरों से रहा।
 
इसके विपरीत दिवाली ऑफर के तहत 1800 रुपए में हवाई सफर करवाने वाली स्पाइसजेट की हालत अत्यंत दयनीय हो गई। तेल कंपनियों के दबाव में इसके विमानों की उड़ान थम सी गई। हालांकि किसी तरह इसे फिर चालू किया गया। उसे नकद पैसे देकर ईंधन खरीदना पड़ रहा है। स्पाइसजेट को फिलहाल 2000 करोड़ की आवश्यकता है। इतना ही नहीं बैंक से मिले कर्ज का अनुचित इस्तेमाल कर किंगफिशर एयरलाइंस भी कंगाल हो गई। 
 
सोना-चांदी की चमक फीकी : आम आदमी का सोने-चांदी से मोहभंग होने लगा है। आईएस संकट और शेयर बाजार की तेजी ने निवेशकों का रुझान इन धातुओं पर कम किया। सरकार ने सोने में निवेश की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए इसके आयात पर कड़े प्रतिबंध लगाए।  2013 के दिसंबर में सोना 30 हजारी था 2014 में इस पीली धातु ने पूरे वर्ष निवेशकों को हैरान किया। सोने से ज्यादा तेजी से चांदी की चमक फिकी हुई। 2013 के अंत में 44 हजार के आंकड़े पर स्थित चांदी 2014 की समाप्ति तक 36 हजार पर थी। दामों में कमी के बाद ही न तो निवेशकों ने सोने में रुची ली न महिलाओं ने गहनों ने रूप में इसे ज्यादा पसंद किया।  
 
17 साल बाद इंटरनेशनल मार्केट में सोने की कीमतों में लगातार 2 साल से गिरावट दर्ज की गई है। 2013 और 2014 में अब तक सोने की कीमतें इंटरनेशनल मार्केट में करीब 50 फीसदी तक घट चुकी हैं। भारत में एक समय सोना 25 हजार और चांदी 35 हजार के स्तर पर आ गए चांदी 2010 के स्तर पर जा पहुंची। 
 
अगस्त 2013 में सोने के आयात में कमी लाने के लिए शुरू की गई 80:20 योजना को भी आरबीआई ने 2014 का अंत में खत्म कर दिया। इस योजना के तहत सोना आयातकों को नए ऑर्डर देने से पहले आयातित गोल्‍ड की मात्रा में से 20 प्रतिशत गोल्‍ड ज्‍वेलरी को निर्यात करना जरूरी था।
अगले पन्ने पर... साल भर कैसी रही रुपए की स्थिति...
मजबूत हुआ रुपया : मुद्रा बाजार में रुपए ने अपने पैर एक बार फिर मजबूती से स्थापित किए। विदेशी निवेश का प्रवाह निरंतर जारी रहने से भी इसके विनिमय मूल्य में स्थिरता आई। 2013 में जहां रुपए का विनिमय मूल्य 12 प्रतिशत तक गिर गया था इस साल स्थिति इसके उलट देखी गई। 
 
हालांकि दिसंबर में देश के व्यापार घाटे के 18 महीने के निचले स्तर पर पहुंचने के कारण रुपया डॉलर के मुकाबले 13 महीने के अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है।
 
भारतीय रुपए के मूल्य में वर्ष के दौरान 0.80 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि दक्षिण अफ्रीका का रेंड 9.4 प्रतिशत, तुर्की का लीरा 6.5 प्रतिशत, रूस का रूबल 43.60 प्रतिशत, इण्डोनेशिया का रुपिहा 2.40 प्रतिशत, चीन का युआन 2.20 प्रतिशत व ब्राजील का रियाल 11 प्रतिशत कमजोर हुआ। मुद्राप्रसार को नियन्त्रित करने के लिए ही रिजर्व बैंक ने ब्याज दर को कम नहीं किया।
 
कुल मिलाकर 2014 उम्मीदों का वर्ष रहा। नई सरकार ने नए हौंसलों के साथ नई रणनीति के तहत काम किया। इसका असर आने वाले पांच सालों तक रहेगा। निवेश के लिए जो बीज इस साल मोदी विदेश में बोकर आए हैं उम्मीद है कि 2015 में देश को उसका फायदा मिलेगा।
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