गुरु वंदना

Webdunia
पढ़ें बालकांड में रचित गुरु वंदना
 

 
* बंदऊं गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥
 
भावार्थ:- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूं, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1॥
 
* सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥
 
भावार्थ:- वह रज सुकृति (पुण्यवान्‌ पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥2॥
 
* श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियं होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥
 
भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3॥
 
* उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहं जो जेहि खानिक॥4॥
 
भावार्थ:- उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहां जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं-॥4॥
 
* बंदउं गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥
 
भावार्थ:- मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूं, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5॥

चौपाई :

 
 
दोहा :
 
* जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1॥
 
भावार्थ:- जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥1॥
 
चौपाई :
 
* गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउं राम चरित भव मोचन॥1॥
 
भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूं॥1॥

 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

प्रयाग कुंभ मेले में जा रहे हैं तो ये 12 कार्य करें और 12 कार्य नहीं

महाकुंभ में नहीं जा पा रहे तो इस विधि से घर बैठे पाएं संगम स्नान का पुण्य लाभ

Saptahik Panchang: साप्ताहिक पंचांग 13 से 19 जनवरी 2025, पढ़ें सप्ताह के मंगलमयी मुहूर्त

Weekly Horoscope: साप्ताहिक राशिफल 2025, जानें इस सप्ताह किसके चमकेंगे सितारे (13 से 19 जनवरी)

Mahakumbh 2025: प्रयागराज कुंभ मेले में जा रहे हैं तो इन 12 नियमों और 12 सावधानियों को करें फॉलो

सभी देखें

धर्म संसार

17 जनवरी 2025 : आपका जन्मदिन

17 जनवरी 2025, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

Shattila Ekadashi: 2025 में कब है षटतिला एकादशी, क्यों मनाई जाती है?

तिल संकटा चौथ पर कौन सा प्रसाद चढ़ाएं श्रीगणेश को, जानें तिल का महत्व और भोग की विधि

डर के मारे भगवा रंग नहीं पहन रही हर्षा रिछारिया, जानिए क्या है वजह?