ऐसे हैं शनि महाराज

Webdunia
- ज्वालाप्रसाद मिश्र

NDND
महोदय, ऐसा नहीं है कि केवल शनि का ही दुष्प्रभाव जातक पर पड़ता है। अन्य ग्रहों के भी अच्छे-बुरे असर पड़ते हैं, परंतु शनि के नाम से ही लोगों के होश गुम हो जाते हैं। कहते हैं कि शिरडी के निकट शिंगणापुर में- जहाँ शनि की सबसे प्रसिद्ध मूर्ति है वहाँ चोरी नहीं होती, क्योंकि चोर भी शनि से डरते हैं।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शनि बहुत धीरे चलने वाला ग्रह है। अतः उसकी साढ़ेसाती हो या अढ़ैया-काटे नहीं कटती। जब शनि का अच्छा प्रभाव होता है तो हमें पता ही नहीं चलता क्योंकि अच्छा समय जल्दी व्यतीत होता है। परंतु जब शनि का प्रकोप काल हो तो अढ़ैया या साढ़ेसाती युगों जैसी लगती है। शनि की गति कम क्यों है? इससे संबंधित कुछ कथाएँ हैं।

यह तो हम जानते ही हैं कि सभी देवताओं, ग्रहों पर रावण का आतंक था। तुलसीदासजी ने लिखा ही है-
' कर जोरे सुर दिसप बिनीता।
भृकुटि बिलोकत सकल समीता॥'

तो साहब जब मेघनाथ मंदोदरी के गर्भ में आया, तो रावण बड़ा प्रसन्न हुआ। पुत्र विजेता, भाग्यशाली, आज्ञाकारी, सर्वगुण संपन्न हो, इस उद्देश्य से रावण ने उसकी जन्म से पूर्व ही कुंडली बनवाई। विद्वानों ने बताया कि कौन-सा ग्रह कहाँ, किस खाने में होना चाहिए। लंकापति ने सभी ग्रहों को आदेश दिया वे अपने-अपने निर्धारित खानों में खड़े हो जाएँ। देवता चिंतित हुए, ग्रह भी परेशान हुए कि यदि ऐसी स्थिति में रावण पुत्र पैदा होगा, तो रामावतार असफल हो जाएगा और उसे कोई मार नहीं सकेगा।

ग्रहों ने आपस में विचार किया कि इस जन्मपत्रिका में चुपचाप कोई परिवर्तन करना ही होगा, पर रावण के कोप से वे परिचित थे। सो अंत में शनि इस काम के लिए तैयार हुए और ठीक जब मंदोदरी को प्रसव पीड़ा आरंभ हुई, तब वे अन्य खाने में चले गए।

मेघनाद के जन्म के पश्चात जब रावण को शनि की हरकत का पता चला तो क्रोध में आकर उसने शनि को उठाकर पटक दिया, जिससे उनकी एक टाँग टूट गई। इसीलिए शनि धीरे चलते हैं।

दूसरी कथा ऐसी है कि किसी देवता ने अपनी पुत्री का विवाह शनि से कर दिया। शनि कृष्ण भक्त थे। एक दिन वे भक्ति में डूबे हुए थे, उनकी पत्नी ने उनसे कुछ कहना चाहा, पर वे सुन न सके। कई घंटों में अनेक बार पत्नी ने उनका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया पर असफल रही। अब उसे क्रोध आ गया और उसने शनि को श्राप दिया कि 'इतनी देर से तुम मेरी ओर देख नहीं रहे हो। अब जिसकी ओर भी देखोगे, उसका बँटाढार हो जाएगा।' शनि हड़बड़ा कर उठे, पर तब तक देर हो चुकी थी। तब से बेचारे शनि नजरें नीचे करके चलते हैं कि उनकी दृष्टि किसी पर पड़ न जाए और इसी वजह से वे तेज नहीं चल सकते।

कुबेर देवता ने भगवान शिव को भोजन हेतु आमंत्रित किया। शिवजी ने कहा, 'मैं अपने शिष्य को भेज दूँगा।' कुबेर निराश तो हुए पर क्या करते। शंकरजी के प्रतिनिधि के रूप में शनि पधारे और उन्होंने इतना खाया कि कुबेर की रसोई, अन्न भंडार सब खाली हो गया। तब वे शनि के पैरों पर गिर पड़े।

तो ऐसे हैं शनि महाराज! जो भी हो हमारे इंदौर में उनका भव्य मंदिर तो है ही, शनि जयंती के अवसर पर संगीत सम्मेलन होते हैं, विद्वानों के व्याख्यान होते हैं। अपनी-अपनी श्रद्धा की बात है ' जाकी रही भावना जैसी, 'शनि' मूरत देखी तिन तैसी।'
Show comments

Bada Mangal 2024 : जानें कब-कब रहेगा बड़ा मंगल, कर लिया इस दिन व्रत तो भाग्य बदल जाएगा

Jyeshtha month 2024: ज्येष्ठ माह के व्रत एवं त्योहारों की लिस्ट

Narmada nadi : नर्मदा नदी के विपरीत दिशा में बहने का कारण जानकर आप रह जाएंगे हैरान

Shash malavya yog : 30 साल बाद शनि-शुक्र के कारण एक साथ शश और मालव्य राजयोग बना, 5 राशियों की खुल जाएगी लॉटरी

Astro prediction: 18 जून को होगी बड़ी घटना, सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है भविष्यवाणी

26 मई 2024 : आपका जन्मदिन

26 मई 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Graho ki parade : जून माह में 6 ग्रहों की होगी परेड, आकाश में दिखाई देगा अद्भुत नजारा

Kuber Puja : भगवान कुबेर को अर्पित करें ये फूल, फल और ये मिठाई, खजाना भर देंगे

Swapna shastra: सपने में यदि दिखाई दें ये 5 घटनाएं तो समझो भाग्य खुल गए