ज्योतिष के 'भ्रामक' प्रचार पर रोक जरूरी

टीवी-समाचार पत्र के विज्ञापनों पर लगे रोक

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
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एस्ट्रोलॉजी एक विज्ञान है यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी कही है। जो लोग ज्योतिष के नाम पर 'भ्रामक' प्रचार कर जनता को मूर्ख बना रहे हैं उन पर रोक लगाई जानी चाहिए। हाल ही में मुंबई के एक एनजीओ ने जनहीत याचिका लगाई है, जो जस्टिस एफआई. रिबेलो और जेएच. भाटिया की बैच ने एक जनहीत याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि राज्य, केंद्र और पुलिस को यह बताना चाहिए कि उसने भविष्यवाणी करने वाले लोगों पर क्या कार्रवाई की है।

आज हमें प्रत्येक चैनलों पर 'भ्रामक' बातें सुनने को मिलती हैं। जैसे शनि ग्रह को ही लें। एक चैनल पर दिखाए गए प्रोग्राम से प्रेरित होकर यूपी के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। ऐसी खबर समाचार पत्रों में छपी थी।

आज-कल टीवी पर प्रसारित कार्यक्रमों में सबसे ज्यादा ज्योतिष को तवज्जो दी जाने लगी है, जिसकी वजह से ज्योतिषी भविष्‍यवाणी के बारे में जानकरी देते है। कोई भी चैनल फ्री में किसी भी कार्यक्रम को पेश नहीं करता। अतः जो लाखों रुपए खर्च कर टीवी पर अपना प्रचार करवाते हैं वे जनता ‍से ही राशि लूटकर चैनल वालों को देते हैं। हमने देखा होगा कि एक लोकप्रिय कलाकार भी लॉकेट व रत्नों का प्रचार करके उसको खरीदने के लिए लोगों को प्रेरित करते दिखाई देते हैं। कोई भी रत्न मात्र पहनने से भाग्य नहीं बदलता ये बात सच है।

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हाँ...! रत्न पहनने से जिस ग्रहों कि रश्मियाँ कम होती हैं, वो पॉवरफुल होकर उस ग्रह के प्रभाव में वृद्धि करके हमें लाभ दिलाता है, लेकिन एकदम नहीं। कई ज्योतिष एक घंटे में, कई ग्यारह घंटों में तो कई एक सौ एक प्रतिशत काम होने की ग्यारंटी देते हैं। सो ऐसे ही ज्योतिषियों ने ज्योतिष का माखौल उडा़या है जिससे आम जनता का ज्योतिष पर से विश्वास उठ गया है। इस प्राचीनतम विद्या को बदनाम किया है। ऐसे लोगों पर अवश्य ही कार्रवाई होनी चाहिए। और ऐसे भ्रामक विज्ञापनों को समाचार पत्रों को भी नहीं छापना चाहिए। कोई भी ज्योतिष भगवान नहीं होता जो ग्यारंटी दें और वह पूरी हो जाएँ। सिर्फ और सिर्फ 'भ्रामक' प्रचार फैला कर अपना उल्लू सीधा करते हैं।

ज्योतिष विज्ञान क्यों? आइए जाने :- जन्मपत्रिका का चलन राम के जमाने में भी था, कृष्ण के जमाने से आज तक है। अधिकांश हिन्दू धर्म को मानने वाले जन्मपत्रिका बनवाते हैं। विवाह, मुंडन, मकान-दुकान का मुहूर्त आदि कार्यों में भी ज्योतिष के कार्य को माना जाता हैं। ग्रहों के बारे में विश्लेषण आज का नहीं है महर्षि पाराशर, भृगु ऋषी, नारदजी, प्रकांड पंडित रावण, भगवान शिवशंकर जी जैसे इस विधा के जानकार थे जो हमारे पुराणों से हम जान सकते हैं। तो क्या हम ज्योतिष को नकार सकते हैं? रही भविष्यवाणी की सही या गलत होने की तो क्या वैज्ञानिक अपनी खोजों में असफल नहीं होते?

जन्मपत्रिका के बारह खानों को अलग-अलग बातों से जाना जाता है। जन्म के समय किस लग्न में जन्म हुआ है व उस समय ग्रहों क‍ी स्थिति क्या थी व किस भाव में ग्रह थे, इस प्रकार ही हम उसके बारे में जान सकते हैं। राजाओं के समय राज ज्योतिषी हुआ करते थे लेकिन आज नहीं हैं। तो क्या हम ज्योतिष को मानना छोड़ देंगे। आज क्या नेता? क्या अभिनेता? सभी ज्योतिष पर विश्वास करते हैं। यहाँ तक कि आईएस, आईपीएस भी ज्योतिषी क‍ी आज्ञा मानकर रत्न धारण करते हैं। यहाँ तक कि कई माननीय न्यायाधिशों की ऊँगलियों में भी रत्नों की अँगूठी पहने देखा जा सकता है।

ये बात अलग है की कौन सही है? कौन गलत? ये उसकी सोच व अनुभव पर निर्भर है। हर समाचार पत्र, पत्र-पत्रिका, टीवी चैनल ज्योतिषियों से भरे पडे़ हैं। ज्योतिष विषय पर हजारों-लाखों किताबें छप चुकी हैं। क्या इन सबको बंद करना होगा? ये सब अब कोर्ट के पाले में है। और जो कोर्ट का निर्णय होगा, सबको मानना होगा।

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