शनि की साढ़े साती : लक्षण और निवारण

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- पी.के. त्रिवेद ी

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ग्रहों में सबसे प्रभावशाली ग्रह दैत्यराज शनि महाराज जब चंद्रमा की राशि जल राशि कर्क में प्रवेश करते हैं, जो उनकी अपनी राशि मकर से सप्तम राशि है एवं उनकी अपनी मूल त्रिकोण राशि से छठी राशि है। शनि की अपनी राशि मकर से सप्तम कर्क राशि में शनि की उपस्थिति से पत्नी (स्त्री पक्ष/ ससुराल) एवं व्यापार धंधे में किसी प्रकार का कोई विशेष दुष्प्रभाव दिखलाई नहीं देगा। इसी प्रकार शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ से छठी राशि कर्क में शनि की उपस्थिति से शत्रुपक्ष कमजोर होगा, कर्जे व बीमारी में राहत मिलेगी एवं ननिहालपक्ष पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। किंतु अन्य राशि किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित होगी, विशेषकर मिथुन, कर्क एवं सिंह राशि। तुला राशि कुछ अंशों में प्रभावित हो सकती है।

शनि की दृष्टि में पड़ने वाली राशियाँ कन्या (शनि की तीसरी दृष्टि) एवं मेष (शनि की दशम दृष्टि) भी किसी न किसी प्रकार के अशुभ का अनुभव कर सकती है। सिंह राशि वाले व्यक्ति को साढ़े साती का प्रथम चरण प्रारंभ हुआ है, कर्क राशि वाले व्यक्ति को साढ़े साती का द्वितीय चरण एवं मिथुन राशि वाले व्यक्ति को साढ़े साती का तीसरा चरण प्रारंभ हुआ है। शनि महाराज जन्म कुंडली में यदि अशुभ स्थान (भाव घर) में अथवा अशुभ राशि नीच राशि (मेष) एवं पाप ग्रह/ शत्रु ग्रह/ क्रूर ग्रह- राहु, केतु, मंगल अथवा सूर्य आदि के साथ शत्रु क्षेत्री होकर बैठे हैं अथवा ऐसे ग्रहों की दृष्टि में हैं तो साढ़े साती के समय यह प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

शनि के अशुभ होने को इन प्रमुख लक्षणों से जाना जा सकता है-

* नशा करने का शौक लत बनने की ओर अग्रसर हो, व्यसन का रूप ग्रहण करे।
* सट्टे/ जुए का शौक आदत बन जाए।
* अनावश्यक झूठ बोलने का स्वभाव अशुभ शनि का प्रमुख लक्षण है।

* अशुभ शनि अवैध एवं अनैतिक संबंध की राह दिखाता है।
* जमीन, प्लाट, मकान के संबंध में समस्या एवं विवाद।
* शाकाहारी व्यक्ति की मांसाहार की ओर प्रवृत्ति।
* भाइयों में बड़ा विवाद/ दुश्मनी।
* नौकरी-धंधे में किसी भी प्रकार का व्यवधान, नौकरी छूटना, अनचाही जगह पर तबादला, पदोन्नति में बाधाएँ, पदावनति तथा व्यापार-व्यवसाय में मंदी, घाटा, दिवाला निकलने की स्थिति, बेशुमार कर्ज, कर्ज अदायगी में चूकना आदि अशुभ शनि के लक्षण हैं।

* पूर्वजों के मकान में अथवा जहाँ एक लंबे अर्से से रह रहे हों, वहाँ यदि रुपया पैसा, गहने इत्यादि सुरक्षा की दृष्टि से रखते आ रहे हैं तथापि जहाँ अँधेरा रहता है, सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता है, ऐसे मकान, कमरे में मोखारा (वेंटीलेशन) से सूर्य का प्रकाश आना शनि के अशुभ प्रभाव में वृद्धि करता है। यह धन-संपत्ति के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

* दैनंदिनी कार्यों में आलस्य, टालमटोल, ढिलाई, सुस्ती, जिम्मेदारी से बचना, जवाबदारी के कार्यों में लापरवाही, स्वयं का लगातार छोटी-मोटी बीमारी से ग्रस्त रहना अथवा परिवार के किसी व्यक्ति का लंबी बीमारी से ग्रस्त रहना शनि का अनिष्ट प्रभाव है।

* शोक-संताप, विषाद, अपने आपके प्रति उदासीनता, अपने लोगों के प्रति कटुता, जुगुप्सा, सांसारिकता से मोह भंग, गृह त्याग का विचार, शनि के दुष्प्रभाव के लक्षण हैं।

अशुभ शनि के अनिष्ट को दूर करने के अति सामान्य, सीधे-सरल उपाय, जिन्हें अपनाने पर सफलता की उम्मीद की जा सकती है, यहाँ दिए जा रहे हैं-

* दक्षिणमुखी मकान अनिष्टकारक हो सकता है, इससे बचने का प्रयास करें।
* बबूल के पेड़ की डंडी से सुबह-शाम दातुन करें।
* लोहे का चिमटा, लोहे का तवा, लोहे की सिगड़ी (आजकल गैस का चूल्हा) किसी साधु-फकीर को दान करें, जिसका प्रयोग वह नित्य प्रति कर अपना भोजन बनाए।
* शनिवार के दिन काले उड़द के लड्डू एवं तिल्ली के लड्डू बनाकर वीराने में, जहाँ हल न चला हो, ऐसी जमीन में गड्ढा खोदकर दबा आएँ।
* बीमारी की दशा में बड़ के पेड़ में (जड़ में) दूध चढ़ाकर वहाँ की गीली मिट्टी से तिलक लगाएँ।
* खड़े काले उड़द, बादाम, नारियल नदी में प्रवाहित करें।
* पूरे डेढ़ माह (45 दिन) नियमित रूप से नंगे पैर धर्मस्थान पर पूजा-पाठ करें। अपने दुष्कर्मों को स्वीकार करते हुए क्षमा याचना करें।
* अपने पूर्वजों के मकान में/ पुराने मकान में ताँबा, चाँदी एवं स्वर्ण एकत्रित कर एक जगह पर रखें।
* दूध, गुड़, सौंफ से घर में हवन करें।
* शुद्ध शहद घर में रखने से संपत्ति में वृद्धि हो सकती है। इसे घर के प्रयोग में कतई न लाएँ। पूजा स्थान पर रखें।
* धन-संपत्ति के लिए अपनी थाली की रोटी में से लगातार डेढ़ माह तक रोटी निकालकर कौवों को डालें।
* शनिवार के दिन अथवा अमावस्या के दिन खड़े काले उड़द, तेल, तिल्ली, बादाम, लोहा इत्यादि शनि की वस्तुओं का यथाशक्ति दान करें (काले कपड़े में बाँधकर)।
* संतान के हित के लिए कुत्तों का भरण-पोषण करें। नियमित तीन कुत्तों को रोटी खिलाएँ।
* काली गाय की यथाशक्ति सेवा करें। गाय को रोटी खिलाएँ।
* शिव मंदिर में जाकर जहाँ शिवलिंग पर नागदेव (प्रतिमा) हो, उन पर दूध चढ़ाकर (दूध पिलाने की मुद्रा में) अभिषेक करें।
* वाद-विवाद, दुश्मनी की स्थिति में बाँसुरी में खांड (बनारसी शक्कर) भरकर वीराने में जाकर गड्ढा खोदकर गाड़ दें।
* चाँदी का चौकोर टुकड़ा हमेशा अपने पास रखें।
* नहाते वक्त पानी में थोड़ा सा दूध डालकर लकड़ी के पटिए पर आलकी-पालकी मारकर बैठे हुए स्नान करें। नहाते वक्त पैर जमीन पर न लगे।
* जन्म कुंडली में चौथा या दसवाँ शनि अशुभ होने की दशा में सूर्यास्त के बाद अथवा सूर्योदय के पूर्व दूध पीना अनिष्टकारक है।
* जन्म कुंडली में शनि यदि मेष का हो अथवा लग्न में हो तो पश्चिम की ओर खुलने वाला हो तो मकान समस्या खड़ी कर सकता है। इस हेतु जमीन में सुरमा गाड़ना फलदायी हो सकता है।

* नशे से परहेज, सट्टे-जुए से दूरी, अवैध-अनैतिक संबंधों का त्याग शनि के अशुभत्व एवं अनिष्ट को दूर करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। परेशानी की स्थिति में बुजुर्ग, शुभचिंतकों की राय पर चलना, झूठ से परहेज करना, अशुभ शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने में बड़ा सहायक होगा।
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