मूल नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति का भविष्यफल

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0 डिग्री से लेकर 360 डिग्री तक सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।

आइए जानते हैं मूल नक्षत्र में जन्मे जातक का भविष्यफल।

नक्षत्र मंडल में मूल का स्थान 19वां है। 'मूल' का अर्थ 'जड़' होता है। मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को पीपल के वृक्ष में प्रसाद और जल चढ़ाते रहना चाहिए तो धन का आवागमन बना रहेगा। मूल नक्षत्र के जातक आमतौर पर लक्ष्य केंद्रित होते हैं तथा ये जातक कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी तब तक प्रयास करते रहते हैं, जब तक या तो ये जातक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें या फिर इन जातकों की सारी ऊर्जा समाप्त न हो जाए।

अगले पन्ने पर जानिए मूल नक्षत्र के जातक का भविष्यफल...


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मूल नक्षत्र : मूल नक्षत्र का स्वामी केतु है, वहीं राशि स्वामी गुरु है इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति पर केतु और गुरु का प्रभाव जीवनभर रहता है। केतु जहां नकारात्मक घटनाओं को जन्म देता हैं, वहीं गुरु जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है। मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। धनु राशि का स्वामी गुरु है तो जातक को चाहिए कि वह धर्मपरायण और विष्णु, हनुमान भक्त बना रहे इसी में उसकी भलाई है।

* प्रतीक : अंकुश
* वृक्ष : साल का पेड़
* देव : निरित्ती (निवृत्ती देवी)
* रंग : बादामी पीला
* अक्षर : य, ये, ब, भा, भी
* नक्षत्र स्वामी : केतु
* राशि स्वामी : गुरु
* शारीरिक गठन : आकर्षक स्वरूप और छरहरा बदन।
* भौतिक सुख : चरित्र उत्तम तो सभी तरह का सुख मिलेगा।

सकारात्मक पक्ष : मूल नक्षत्र के जातक अपने विचारों पर दृढ़ होते हैं और इनमें निर्णय लेने की क्षमता भी गजब की होती है। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल होते हैं। ये खोजी बुद्धि के होते हैं। शोधकार्य में सफलता मिल सकती है। ये कुशल और निपुण व्यक्ति होने के साथ- साथ उत्कृष्ट वक्ता भी होते हैं। ये डॉक्टर या उपचारक भी हो सकते हैं। ये भावुक प्रवृत्ति के होने के कारण दयालु और सभी का भला करने वाले भी होते हैं।

नकारात्मक पक्ष : यदि केतु और गुरु की स्थिति कुंडली में सही नहीं है तो ये बेहद जिद्दी किस्म के हो जाते हैं और अपनी मनमानी करते हैं। इनकी विनाशकारी कार्यों में रुचि बढ़ जाती है। ऐसे में इनके गलत मार्ग पर चलने के खतरे भी बढ़ जाते हैं। इनमें ईर्ष्या की भावना प्रबल हो जाती है। ये अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। ये तंत्र-मंत्र या पारलौकिक विद्या के चक्कर में पड़कर अपना करियर बर्बाद कर लेते हैं। इनके पैरों में हमेशा तकलीफ बनी रह सकती है। यदि ऐसा जातक माता-पिता का कहना मानते हुए विष्णु या हनुमानजी की शरण में रहे, तो सभी तरह की मुसीबतों से बच सकता है।

प्रस्तुति - शतायु


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