लक्ष्मी प्राप्ति की सिद्ध तंत्र विधियाँ

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तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। विश्वास है कि तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। हमने यहाँ तंत्र द्वारा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न सिद्ध तंत्र विधिया ँ उपलब्ध कराई गई हैं।

हरिद्रा तंत् र
हरिद्रा का प्रचलित नाम हल्दी है। हरिद्रा (हल्दी) कई प्रकार की होती है। एक हल्दी खाने के काम में नहीं आती पर चोट लगने और दूसरे औषधीय गुणों में उसे महत्व दिया जाता है। ये रंग में सभी पीली होती है और पवित्रता का तत्व सभी में होता है। हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली हल्दी पीली (बसंती) और लाल (नारंगी) दो प्रकार की होती है। यद्यपि वह वर्ण भेद बहुत सूक्ष्म होता है, सामान्य दृष्टि में वह पीली ही दिख पड़ती है। इसी में कोई-कोई गाँठ काले रंग की निकल आती है। हालाँकि ऐसा कदाचित ही कभी होता है, किन्तु यदि किसी को यह काली हल्दी की गाँठ प्राप्त हो जाए तो समझना चाहिए कि लक्ष्मी प्राप्ति का एक श्रेष्ठ दैवी साधन मिल गया है।

यह काली हल्दी (गहरे कत्थई रंग की) देखने में जितनी कुरूप, अनाकर्षक और अनुपयोगी प्रतीत होती है, वस्तुतः वह उतनी ही अधिक मूल्यवान, दुर्लभ और दिव्य गुणयुक्त होती है। यदि किसी को ऐसी हल्दी प्राप्त हो जाए तो उसे घर लाकर दैनिक पूजा के स्थान पर रख दें। यह जहाँ भी होती है, सहज ही वहाँ श्री-समृद्धि का आगमन होने लगता है। उसे नए कपड़े में अक्षत और चाँदी के टुकड़े अथवा किसी सिक्के के साथ रखकर गाँठ बाँध दें और धूप-दीप से पूजा करके गल्ले या बक्से में रख दें तो आश्चर्यजनक अर्थ लाभ होने लगता है। व्यापारी वर्ग इसे गल्ले (पैसों की थैली या तिजोरी) में रखते हैं।

लक्ष्मी साधना के अंतर्गत इस हरिद्रा तंत्र की विधि यह है कि किसी भी अष्टमी से इसकी पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम प्रातः उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो, ठीक सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठें। तत्पश्चात्‌ इस हल्दी की गाँठ को धूप-दीप देकर नमस्कार करें। यह क्रिया ठीक सूर्योदय के समय की जाती है, परन्तु स्थान ऐसा हो कि साधक सूर्यनारायण के दर्शन कर सके। उदय होते हुए सूर्यनारायण को नमस्कार करके, सामने आसन पर प्रतिष्ठित हरिद्रा खण्ड (हल्दी की गाँठ) को नमस्कार करते हुए माला से 108 बार इस मंत्र का जाप करना चाहिए- ' ॐ ह्रीं सूर्याय नमः'।

इस विधि से प्रतिदिन इसकी पूजा की जाए तो बहुत लाभ होता है। अष्टमी के दिन उपवास रखकर, विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए। उस दिन व्रत रखने, फलाहार करने, यथाशक्ति कुछ दान-पुण्य करने से इसका विशेष प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

हरिद्रा तंत्र की साधना में यह तथ्य स्मरण रखना चाहिए कि इसके साधक के लिए मूली, गाजर और जमींकन्द (सूरन) का प्रयोग वर्जित है। अतः खाद्य रूप में इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

नैवेद्य तंत् र
यह एक अति सरल तंत्र प्रयोग है। इसकी साधना इस प्रकार की जाती है कि शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन सायंकाल चंद्रमा को धूप-दीप देकर श्वेत पदार्थ का नैवेद्य अर्पित करें। नैवेद्य के पास ही दीपक जलाकर रख दें। यह क्रिया ऐसे स्थान पर की जानी चाहिए, जहां चंद्रमा की किरणें आ रही हों। झरोखा, जीना अथवा छत पर जहां चांदनी हो, वहीं नैवेद्य तथा दीपक रखें, अंधेरे में अथवा चंद्रमा के परोक्ष स्थान पर रखने से साधना निष्फल हो जाती है। नियमानुसार की गई यह साधना भी व्यवसायी, उद्यमी, राज्य कर्मचारी वर्ग को बहुत लाभप्रद सिद्ध होती है।

अश्व-जिह्वा तंत् र
घोड़ी की शारीरिक संरचना में कुछ ऐसा वैचित्र्य है कि प्रसव के समय उसकी जीभ का अग्र भाग अपने आप गिर जाता है। यह भी दुर्लभ वस्तु है, कारण कि एक तो घोड़े-घोड़ी पालने का रिवाज समाप्त हो गया है, दूसरे जहां कहीं भी घोड़ी हो तो उसके प्रसव के समय वहां उपस्थित रहने का संयोग ही नहीं बन पाता। फिर भी प्रयास से सब कुछ संभव है।

मार्जारी की भांति घोड़ी की भी लगातार देखभाल की जाए तो प्रसव के समय उसके मुख से गिरी हुई जीभ प्राप्त हो जाती है। विचित्र बात यह है कि घोड़ी के मुख से जीभ गिरने के बाद उसे फिर नई जीभ आ जाती है। अस्तु बिल्ली की नाल की तरह उसे भी सुखाकर और हल्दी लगाकर रख देना चाहिए। यह जीभ बहुत समृद्धिदायक मानी गई है।

किसी शुभ मुहूर्त में उस जीभ को धूप-दीप देकर लक्ष्मीजी को ध्यान करते हुए बटुए में, भण्डार में, कोष में अथवा जेवरों की पिटारी में रख देना चाहिए। उसके प्रभाव से घर में धन-धान्य की वृद्धि होने लगती है।

अडार तंत् र
दारिद्रय निवारण और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए अडार तंत्र की साधना करनी चाहिए। स्मरण रहे कि यह साधना मुख्यतः स्त्रियों (गृहिणियों) के द्वारा की जाती है। जिस घर में स्त्री न हो, वहां पुरुष भी यह साधना कर सकते हैं। अडार तंत्र का परिणाम थोड़े ही दिनों में अपना प्रभाव दिखाने लगता है।

सायंकाल घर में जितनी भी लालटेन, चिमनी, कुप्पी, दीपक, बल्ब, ट्यूबलाइट, कंदील आदि हों, उन्हें थोड़ी देर के लिए जला दें। कम से कम दो-तीन दीपक सभी घरों में रहते हैं, उन्हें जलाकर घर में इस तरह से रखें कि सर्वत्र प्रकाश फैल जाए, अंधेरा न रहने पाए। यथास्थान ऐसी प्रकाश व्यवस्था 10-15 मिनट अथवा 2-3 घंटे तक के लिए की जा सकती है। बाद में अन्य प्रकाश यंत्रों को बुझाकर एक मुख्य प्रकाश यंत्र को रातभर जला रहने दें। यहां यह भी स्मरण रखना चाहिए कि दीपक को कभी फूंक से न बुझाएं।

मुख से फूंक मारकर दीपक बुझाना निषिद्ध है। किसी वस्त्र या हाथ के माध्यम से हवा का झोंका मारकर ही उसे बुझाना चाहिए। इस क्रम में यह भी अनिवार्य नियम है कि दीपक से कुछ जलाएं भी नहीं। बहुधा स्त्रियां दीपक से ही चूल्हा, तपता आदि जलाती हैं। यह बहुत ही अमंगलकारी होता है। इस क्रिया से दरिद्रता, ऋण, अभाव बढ़कर श्री-सम्पत्ति की हानि होती है। अतः दीपक से भूलकर भी कोई अग्नि प्रयोग न करें। उसके लिए अलग से माचिस या अंगारों का प्रयोग करना चाहिए।

इस प्रकार प्रत्येक शनिवार और अमावस्या के दिन घर का कूड़ा-कचरा, रद्दी सामान बाहर फेंकना चाहिए, फर्श की धुलाई (लिपाई-पुताई) करना, सायं पूरे घर को प्रकाशित करना तथा समस्त वस्तुओं को झाड़-पोंछकर यथाक्रम रखना यही अडार तंत्र है।

नोट :- तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है। चूंकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।

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