महामृत्युंजय यंत्र - 'यन्त्रोत्मविम्बेषु।'

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यंत्रों में जादुई शक्ति सदा विराजमान रहती है जिसके कारण यंत्र शीघ्र ही अपने प्रभावों को पूर्णतः स्पष्ट कर देते हैं।

यंत्र बनाना या इनका लेखन करना एक तांत्रिक प्रणाली है और इस कार्य को प्रायः तांत्रिक ही पूर्ण करते हैं।

रेखा गणित के प्रमेय, निर्मेय, त्रिकोण, चतुर्भुज आदि जैसी आकृति बनाकर उनमें प्रत्येक स्थान पर बीज मंत्र या शक्ति संख्या लिखी जाती है। इस भाँति से बनने वाले चित्र को यंत्र कहा जाता है। यह मान्यता है कि यंत्र देवता का निवास स्थल होते हैं। अतः प्रत्येक देवता और उसकी शक्ति के अनुसार यंत्रों का लेखन किया जाता है।

यंत्र कई भाँति से प्रयोग किए हैं जिनमें से मुख्यतः धारण तथा स्थापना यंत्र होते हैं।

महामृत्युंजयी संजीवनी विद्या के और इनसे संबंध रखने वाले अनेकानेक यंत्र पाए जाते हैं। इनमें से कुछ धारण करने के योग्य तथा अन्य यंत्र पूजन तथा स्थापना करने के योग्य हैं।

महामृत्युंजय यंत् र
1. इस यंत्र को किसी शुभ समय पर या ग्रहण काल में भोजपत्र के ऊपर रक्त चंदन की स्याही तथा बेल की लेखनी से लिखकर धूप-दीप करके धारण कर लें तो समस्त रोगों का नाश हो जाता है और कुटुम्ब में भी सुख-शांति रहती है।

2. इस यंत्र को दो विभिन्न भोजपत्रों पर अनार की कलम तथा रक्त चंदन से लिखकर एक को धारण करने से विपक्षी के कुचक्र शांत हो जाते हैं। यदि विपक्षी का स्तंभन करना हो तब दूसरे यंत्र को किसी शिला के नीचे दबा दें।

संजीवनी विद्या यंत् र
इस यंत्र को चमेली की कलम से अष्टगंध की स्याही के द्वारा भोजपत्र के ऊपर लिखकर पास में रख लें और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें तो प्रयोग सफल होता है।

आग्नेय महामृत्युंजय यंत् र
इस यंत्र को चमेली की लेखनी से रक्त चंदन की स्याही के द्वारा भोजपत्र के ऊपर लिखकर वैदिक बीजोक्त महामृत्युंजय मंत्र के जप करने से सफलता प्राप्त होती है।

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