हर सफलता का मंत्र, घर में रखें 'श्रीयंत्र'

श्रीयंत्र : ब्रह्मांड का प्रतीक

Webdunia
- योगी रमेश
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महान खोजों के क्रम में 'श्रीयंत्र' की खोज भी एक विस्मयकारी खोज है, जो कि आज के संतप्त मानव को हर प्रकार की शांति प्रदान करने में पूर्ण समर्थ है।

ब्रह्मांड का प्रती क
श्री विद्या के यंत्र को 'श्रीयंत्र' कहते हैं या 'श्रीचक्र' कहते हैं। यह अकेला ऐसा यंत्र है, जो समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है। श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है। यह यंत्र श्री विद्या से संबंध रखता है। श्री विद्या का अर्थ साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि हर प्रकार की 'श्री' देने वाली विद्या को कहा जाता है।

यह परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महात्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है। यह चक्र ही उनका निवास एवं रथ है। यह ऐसा समर्थ यंत्र है कि इसमें समस्त देवों की आराधना-उपासना की जा सकती है। सभी वर्ण संप्रदाय का मान्य एवं आराध्य है। यह यंत्र हर प्रकार से श्री प्रदान करता है जैसा कि दुर्गा सप्तशती में कहा गया है-

आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गद ा

आराधना किए जाने पर आदिशक्ति मनुष्यों को सुख, भोग, स्वर्ग, अपवर्ग देने वाली होती है। उपासना सिद्ध होने पर सभी प्रकार की 'श्री' अर्थात चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति हो सकती है। इसील‍िए इसे 'श्रीयंत्र' कहते हैं। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर सुंदरी हैं। इसे शास्त्रों में विद्या, महाविद्या, परम विद्या के नाम से जाना जाता है। वामकेश्वर तंत्र में कहा है-

सर्वदेव मयी विद्य ा

दुर्गा सप्तशती में- विद्यासि सा भगवती परमा‍हि देवि।

हे देवी! तुम ही परम विद्या हो।

इस महाचक्र का बहुत विचित्र विन्यास है। यंत्र के मध्य में बिंदु है, बाहर भूपुऱ, भुपुर के चारों तरफ चार द्वार और कुल दस प्रकार के अवयय हैं, जो इस प्रकार हैं- बिंदु, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, वहिर्दशार, चतुर्दशार, अष्टदल कमल, षोडषदल कमल, तीन वृत्त, तीन भूपुर। इसमें चार उर्ध्व मुख त्रिकोण हैं, जिसे श्री कंठ या शिव त्रिकोण कहते हैं। पांच अधोमुख त्रिकोण होते हैं, जिन्हें शिव युवती या शक्ति त्रिकोण कहते हैं। आदि शंकराचार्य ने सौंदर्य लहरी में कहा-

चतुर्भि: श्रीकंठे: शिवयुवतिभि: पश्चभिरप ि

नवचक्रों से बने इस यंत्र में चार शिव चक्र, पांच शक्ति चक्र होते हैं। इस प्रकार इस यंत्र में 43 त्रिकोण, 28 मर्म स्थान, 24 संधियां बनती हैं। तीन रेखा के मिलन स्थल को मर्म और दो रेखाओं के मिलन स्थल को संधि कहा जाता है।

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