लीबिया: तलवार की धार पर अमेरिका

Webdunia
बुधवार, 23 मार्च 2011 (13:10 IST)
- ज़ुबैर अहमद (वॉशिंगटन)

BBC
लीबिया में सैन्य हस्तक्षेप की अनुमति पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने दे दी है, लेकिन अब तक इसका कोई महत्वपूर्ण उद्देश्य सामने नहीं आया है। क्या इसका उद्देश्य आम नागरिकों की सुरक्षा है? क्या तेल की सप्लाई को चालू रखना है? क्या इसका मकसद कर्नल मुअम्मार गद्दाफी को सत्ता से हटाना है?

वॉशिंगटन में इन्हीं सवालों पर रोज चर्चा हो रही है। चर्चा का दूसरा बड़ा विषय है लीबिया में सैन्य हस्तक्षेप से अमेरिका को क्या फायदा है? अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्य लीबिया में अमेरिका की भूमिका पर चुभते हुए सवाल उठा रहे हैं।

लीबिया पर तीसरे बड़े मुद्दे के तौर पर चर्चा हो रही है अंतरराष्ट्रीय गठबंधन सेना में आपसी फूट पर। एन्थनी कॉर्ड्समैन अरब देशों की राजनीति के जाने-माने विशेषज्ञ हैं और उनका कहना है की सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव पारित तो हो गया है, लेकिन इस में स्पष्टता नहीं है।

उनका कहना है, 'नो फ्लाई जोन लागू करने के पहले दिन ही फ्रांस के जहाजों ने गद्दाफी के सैनिकों पर हमला कर दिया। जबकि प्रस्ताव में गद्दाफी की वायुसेना को लीबिया के नागरिकों पर हमला करने से रोकना है।'

उनका कहना है की गद्दाफी के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में जुटे हर देश का उद्देश्य और लक्ष्य अलग नजर आता है।

कॉर्ड्समैन कहते हैं, 'इस समय ब्रिटेन कहता है कि गद्दाफी को सत्ता से हटाना हमारा उद्देश नहीं है, फ्रांस कहता है यही सबसे बड़ा लक्ष्य है और उन्हें कैसे हटाया जाए इस बारे में भी मतभेद है।'

अमेरिका में एक और जंग में शामिल होने की चाह और साहस बिलकुल नहीं है। अफगानिस्तान और इराक में युद्ध से अमेरिकी अब तंग नजर आते हैं। इसलिए राष्ट्रपति बराक ओबामा लीबिया में हस्तक्षेप के फैसले पर टाल-मटोल करते आए हैं।

दूसरा कारण है की अमेरिकी प्रशासन को डर है की अरब और मुस्लिम देशों में अमेरिकी हस्तक्षेप को सही नजरों से नहीं देखा जाएगा। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के पारित होने के बाद अमेरिका लीबिया के खिलाफ कार्रवाई कर जरूर रहा है, लेकिन नेतृत्व की भूमिका में नहीं।

सोमवार को अमेरिकीके राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि उनका देश पश्चिमी गठबंधन सेनाओं की कमान ‘कुछ हफ्तों में नहीं बल्कि कुछ दिनों में छोड़ देगा।

लेकिन इस घोषणा के बावजूद कुछ विशेषज्ञ कहते हैं की अमेरिका पश्चिमी गठबंधन सेनाओं का नेतृत्व पूरी तरह से खोना नहीं चाहता और नेटो को आगे बढ़ाना चाहता है। दूसरे शब्दों में मतलब होगा कि अमेरिका की भूमिका जारी रहेगी, लेकिन अगर युद्ध के बीच कुछ गड़बड़ हुई तो वो इसका जिम्मेदार नहीं होगा।

उधर फ्रांस और इटली अहम भूमिका निभाने के लिए बेचैन हैं और कई मुद्दों पर ब्रिटेन और अमेरिका के विचारों का विरोध करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति पर देश के अन्दर लीबिया में पूरी तरह से हस्तक्षेप न करने का जबरदस्त दबाव है।

अमेरिकी कांग्रेस के एक सदस्य और डेमोक्रेटिक पार्टी के एक नेता डेनिस कुसिनिच ने लीबिया में सैनिक कार्रवाई का कड़ा विरोध किया है और अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई तक की बात कह डाली है।

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार लीबिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में अरबों डॉलर का खर्च आएगा जो देश की खराब अर्थव्यवस्था के कारण अमेरिकी सरकार के बस के बाहर की बात है।

लीबिया में गद्दाफी के बाद कौन सी पार्टी या कौन नेता सत्ता पर काबिज होगा और कौन देश के पुनर्निर्माण में शामिल होगा यह किसी भी देश को नहीं मालूम और यह अमेरिकी समेत सभी पश्चमी देशके लिए चिंता का मुख्य विषय है।

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