क्या आपको जानबूझकर नजरअंदाज करते हैं बच्चे?

- फिलिप्पा रॉक्सबी (स्वास्थ्य संवाददाता)

Webdunia
मंगलवार, 27 मई 2014 (11:31 IST)
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कई बार अभिभावक और अध्यापक इस बात से झुंझला उठते हैं कि बच्चे टीवी देखते समय, कोई खेल खेलते समय या किताब पढ़ते समय उनकी मामूली हिदायतों पर भी ध्यान नहीं देते।

बच्चे जिस काम में लगे हों उसके अलावा उनके आसपास जो कुछ भी हो रहा हो उसे नजरअंदाज करने की काबिलियत उनमें इतनी ज्यादा होती है कि अगर उन्हें लाउडस्पीकर से कुछ कहा जाए तो भी उनकी प्रतिक्रिया में ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।

लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि उनकी इस बेरुखी का पीछे वैज्ञानिक कारण हैं। उनकी यह क्षमता दरअसल मस्तिष्क के विकास प्रक्रिया का अंग है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे जानबूझकर ऐसा नहीं करते। वो एक तरह की उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता से गुजर रहे होते हैं।

यह उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता, मूलतः देखने और नजर डालने, सुनने और जो कहा गया है उस पर ध्यान देने के बीच का फर्क है। इसका परिणाम होता है जागरूकता का अभाव, खासकर उन चीजों के बारे में जो तात्कालिक ध्यान में न हो।
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बच्चों और बड़ों में फर्क : यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस की प्रोफेसर निली लेवी के अनुसार बच्चे वयस्कों की तुलना में अपने आसपास की जानकारियों के प्रति कम जागरूक होते हैं।

प्रोफेसर लेवी के अनुसार, 'अभिभावकों और देखरेख करने वालों को यह समझना होगा कि किसी मामूली सी चीज पर ध्यान केंद्रित करने से भी बच्चे वयस्कों की तुलना में अपने आसपास के परिवेश से ज्यादा कट जाते हैं।'

वह बताती हैं, 'जैसे, कोई बच्चा अपने कोट के बटन बंद करते हुए सड़क पार करते समय दूसरी तरफ से आती हुई गाड़ियों पर शायद ध्यान नहीं दे पाए लेकिन वयस्क आसानी से ऐसा कर पाते हैं। जिस चीज पर आपका ध्यान हो उसके अलावा आसपास के परिवेश पर ध्यान देने की योग्यता उम्र के साथ विकसित होती है।'

बच्चों की इस प्रवृत्ति के कई बार खतरनाक नतीजे भी हो सकते हैं। जैसे अगर मोबाइल पर मैसेज करते समय कोई बच्चा सड़क पार कर रहा हो तो यह उसके लिए ज्यादा खतरनाक हो सकता है। लेकिन बच्चों की इस उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता का फायदा भी होता है।

आखिर कौन चाहता है कि हर बात पर उसका ध्यान बंटे? अपने परिवेश के प्रति अनभिज्ञ रहने से हमारी एकाग्रता और ध्यान बेहतर होता है।
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जरूरी है एकाग्रता : मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हर किसी में एक हद तक एकाग्रता की एक निश्चित क्षमता ही होती है और जब हम कोई महत्वाकांक्षी कार्य कर रहे होते हैं तो हमें एकाग्रता की बहुत ज्यादा जरूरत होती है।

प्रोफेसर लेवी कहती हैं, 'दिमाग का बड़ा हिस्सा इसके लिए समर्पित रहता है। यह बेहद कठिन कार्य है। हम उन चीजों पर तवज्जो नहीं देना चाहते जो महत्वपूर्ण न हों।'

लेवी कहती हैं, 'इसके लिए आपको उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता की जरूरत होती है, वरना आप एकाग्रता नहीं बना पाएंगे और ऐसे में दुनिया में जीना मुश्किल हो जाएगा।'

लेवी कहती हैं कि दिमाग हमारे अंदर यह भ्रम पैदा करता है कि वो हर समय हर चीज पर नजर रखे हुए है। और जब हम किसी बहुत जाहिर सी बात पर ध्यान नहीं दे पाते तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर में मनोविज्ञान के प्रोफेसर रिचर्ड वाइजमैन ने मनुष्य की दृष्टि क्षमता का विस्तृत अध्ययन किया है। उनके अनुसार यह काफी जटिल चीज है।

प्रोफेसर वाइजमैन प्रचलित 'सेलेक्टिव अटेंशन टेस्ट' में संशोधन करके इसका प्रयोग करते हैं। इस टेस्ट का विकास डेनियल साइमंस ने किया था। इस टेस्ट में दिखाया जाता है कि एक वीडियो में दिखने वाले एक गोरिल्ला की अनदेखी कर जाना कितना आसान है।

रचनात्मक लोगों की एकाग्रता बेहतर : प्रोफेसर वाइजमैन कहते हैं कि रचनात्मक लोग दूसरों के मुकाबले चीजों पर ज्यादा ध्यान दे पाते हैं। वहीं जो लोग काम को लेकर उत्तेजित या परेशान रहते हैं उनके कमरे में मौजूद गोरिल्ला (एक मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण के दौरान) पर ध्यान की संभावना काफी कम होती है।

वे कहते हैं सामान्य जीवन में हम कई बार बेहद जाहिर सी बात पर ध्यान नहीं दे पाते क्योंकि हमारा ध्यान उस वक़्त कहीं और पूरी तरह एकाग्र होता है। उदाहरणस्वरूप, कार चालक कहते हैं कि वे पैदल यात्री पर इसलिए ध्यान नहीं दे पाए क्योंकि उनका ध्यान सड़क पर मौजूद किसी और चीज पर था।

वाइजमैन कहते हैं, 'बड़े होने के साथ हम सीखते हैं कि क्या गैर जरूरी है इसलिए वयस्कों के एक चीज से दूसरी चीज पर ध्यान ले जाने की संभावना ज्यादा होती है।'

जहां तक गैर इरादतन उपेक्षा की बात है हम सब इसके शिकार हो सकते हैं। हम सब इसको लेकर शिकवा-शिकायत करते हैं, फिर भी यह आम जीवन के लिए जरूरी है।

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