बहुत कुछ है, जो अश्लील है

दीपक असीम
अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के खिलाफ अपराध करता है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए या उसके घर की महिला के साथ भी वही सब किया जाना चाहिए? कानून कहता है कि बलात्कारी को सजा मिलनी चाहिए। बलात्कार करने वाले की माँ-बहन-बेटी के साथ बलात्कार करना न्याय नहीं, एक और अपराध है। कानून बलात्कारी को सजा देता है, उसकी माँ-बहन को नहीं।

हमारी बुद्धि भी यही कहती है कि सजा तो बलात्कारी को ही मिलनी चाहिए। मगर हमारे मन की गहरी जड़ों में इतना तर्क और बुद्धिमानी नहीं है। किसी महिला को छेड़ना उस महिला को छेड़ना भर नहीं है। किसी की पत्नी को छेड़ना भी है, किसी की बहन को छेड़ना भी है। उस महिला के पुरुष रिश्तेदार खुद को ज्यादा अपमानित महसूस करते हैं। एक बार महिला माफ कर भी दे, पुरुष माफ नहीं करते। अगर मुमकिन हो, तो पुरुषों की छाती तभी ठंडी होगी, जब वे उस छेड़ने वाले की बहन-बेटी को छेड़ लेंगे। यहाँ मुद्दा महिला नहीं है, महिला तो सामान है, मालकियत है। मेरी मालकियत वाली वस्तु को अगर तू तोड़ेगा, तो मैं तेरी मालकियत वाली चीज को मिटा दूँगा।

अच्छे कपड़े पहनने वाले और अंग्रेजी छाँटने वाले भी इस अन्यायपूर्ण आदिम सोच से परे नहीं हैं। इन दिनों एक विज्ञापन टीवी पर आ रहा है। दादा अपने पोते के सामने अफसोस कर रहा है कि बरसों पहले एक बदमाश ने तेरी दादी के गाल पर जबरन चुम्मा लिया था। वो आग अब भी मेरे मन में सुलग रही है। पोता कहता है चलो बदला लेते हैं, ढूँढते हैं उस आदमी को। इत्तफाक से वो आदमी मिल भी जाता है। वो आदमी बूढ़ा हो चुका है। उसकी पत्नी भी बूढ़ी है। दादा पोता आवाज देकर उसे बुलाते हैं। वो आदमी बाहर आता है, उसकी पत्नी भी साथ में है। अचानक दादा उस बूढ़ी का गाल चूमकर भागता है। अब दादा खुश है कि उसने बरसों पहले अपनी पत्नी के साथ हुए एक अपराध का बदला ले लिया। मगर ये बदला किस तरह का है? आपकी पत्नी के साथ किसी ने गलत किया तो आप उस आदमी को डाँटने या थप्पड़ मारने की बजाय उसकी पत्नी के साथ बदतमीजी कर रहे हैं। फिर खुश भी हो रहे हैं? हैरत है कि पोता भी इसी सोच का है। हालाँकि पोता नई पीढ़ी का है। दादा पुरानी पीढ़ी का बूढ़ा है और पोता नौजवान होते भी सोच से बूढ़ा ही है।

ये विज्ञापन हमारे आंतरिक मन को उजागर करता है। हम पढ़े-लिखे लोग भी सोचते हैं कि बलात्कार का बदला बलात्कार ही होना चाहिए। आँख का बदला आँख एक बार फिर न्याय के नजदीक हो सकता है, मगर बलात्कार में न तो उस स्त्री का कोई दोष है और न इस स्त्री का। गाल चूमकर भागना और बलात्कार इसलिए अलग नहीं है कि दोनों जगह पीड़ित तो नारी ही है। इसी तरह के बहुत विज्ञापन हैं, जो हमारे सभ्य और सुसंस्कृत होने की कलई एकदम से खोल देते हैं। बदन पर छिड़कने वाली खुशबू के ही विज्ञापन अश्लील नहीं हैं और भी बहुत कुछ है, जो अश्लील है और जिसे नहीं होना चाहिए।

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