बदले सुर बदली आवाज़ नायकों की

रंजीत मल्होत्रा

Webdunia
अस्सी के दशक तक भी कई गायकों की आवाज़ को कुछ नायकों के लिए विशेषतौर पर फिट माना जाता था। आश्चर्य की बात यह है कि इनमें सलमान खान और एसपी बालासुब्रमण्यम की जोड़ी भी शामिल थी...जबकि इन दोनों की ही आवाज़ एक-दूसरे के व्यक्तित्व से बिलकुल जुदा है, लेकिन इस आवाज़ का मेल चल निकला और काफी फिल्मों में सलमान के गीत एसपी की आवाज़ में सुनने को मिले।

सलमान के अलावा दक्षिण से हिन्दी फिल्मों में आए नायकों के लिए भी कई बार एसपी की आवाज़ को सही मान लिया जाता था क्योंकि यह मामला दक्षिण वर्सेस दक्षिण का मान लिया जाता था, फिर भले ही वह आवाज़ नायक के जोनर से सूट करे या न करे... खैर फिर से आते हैं आज पर। अब फिल्मों में एक ही नायक के गाने कई गायक गा देते हैं। यानी की शाहरुख खान के लिए सुखविंदरसिंह से लेकर एआर रहमान, सोनू निगम, शान, आतिफ असलम तथा विशाल ददलानी तक गाना गा सकते हैं।

वहीं आमिर खान के लिए उदित नारायण से लेकर शान, सोनू निगम, केके तक अपनी आवाज़ दे सकते हैं। यानी आज फिल्मों में रणबीर कपूर और इमरान खान से लेकर सलमान खान तक के लिए ढेर गायक अपनी आवाज़ देने वाले हैं। अब कोई एक गायक किसी एक नायक से ही नहीं जुड़ा रहता। कई बार तो एक ही फिल्म में कई गायक अलग-अलग गानों में अपनी आवाज़ नायक को देते हैं। इसके अलावा कई बार नायक खुद ही अपने गाने गा लेते हैं। इसके पीछे एक कारण गायकों की संख्या में हुआ इजाफा भी है और दूसरे अब एक ही फिल्म में अलग-अलग गानों के लिए अलग-अलग म्यूजिक डायरेक्टर तक से काम करवाने का ट्रेंड चल निकला है। ऐसे में गायकों का भिन्न होना भी लाजिमी-सा है।

इस तरह आज नायकों के पास आवाजों की वैरायटी के विकल्प मौजूद हैं। वहीं गायकों के भी किसी एक नायक तक सीमित रह जाने जैसी कोई सीमा नहीं है। अब अगर रूपकुमार राठौर शाहरुख खान के लिए "तुझमें रब बसता है.." गाते हैं तो उसी फिल्म में "हौले-हौले से हवा चलती है.." सुखविंदर गाते हैं और "डांस पे चांस.." को आवाज देते हैं लाभ जान्जुआ। ठीक इसी तरह रणबीर कपूर के लिए "तेरा होने लगा हूँ.." और "तू जाने ना.." आतिफ असलम गाते हैं तो "प्रेम की नैया है राम के भरोसे.." के लिए नीरज श्रीधर रणबीर को अपनी आवाज़ देते हैं।

उल्लेखनीय है कि सालों पहले जब किसी ने एक दिन अचानक आकर शम्मी कपूरजी से कहा- "शम्मीजी, आपकी आवाज़ चली गई।" तो अचानक शम्मी कपूर कुछ समझ नहीं पाए, लेकिन जब उन्हें पता चला कि यह वाक्य रफी साहब के गुजर जाने के कारण कहा गया है तो वे फूट-फूट कर रो दिए।

असल में तब गायक, नायक के फिल्मी जीवन की ऐसी आवाज़ बन जाते थे जिससे अलग करके नायक की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। आज बदले हुए जमाने में नायक खुद भी गाते हैं और ढेर सारे गायकों की भी आवाज़ उधार लेते हैं। अब आप किसी गायक को किसी एक नायक की आवाज़ नहीं बत ा सकते।

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