गुरुमंत्र : पहल करें और आगे बढ़ें

विषम परिस्थिति का करें हिम्मत से सामना

Webdunia
अनुराग तागड़े
ND
डरना मनुष्य की आम प्रवृत्ति है और इस डर में भी उसे एक अलग तरह का सुख मिलता है डर का सुख। यह सुख और कुछ नहीं किसी बड़े काम या पहल न करने का सुख होता है। अगर आप कोई भी पहल करके या रिस्क लेकर काम न करेंगे तब जिंदगी में आगे ही नहीं बढ़ सकते परंतु मनुष्य प्रवृत्ति होती है कि किसी भी तरह के बदलाव को खासतौर पर जिसमें काफी सारी हिम्मत और रिस्क शामिल हो तब उस काम को नहीं करने का ही मन बना लेता है ।

करियर की बात हो या जिंदगी में कुछ नया करने की बात हो मन में शंका उठना स्वाभाविक है और उस शंका का निवारण भी हमें ही करना होता है। कुछ साथी ऐसे होते हैं जो अपनी बात पर कायम रहते हैं फिर चाहे सफलता मिले या असफलता वे सबकुछ अपने दम पर अपनी हिम्मत पर करने का माद्दा रखते हैं। जबकि कुछ साथी किसी अन्य द्वारा भी जरा सी शंका जाहिर करने पर अनिर्णय की स्थिति में आ जाते हैं जबकि वे स्वयं इस बात से आश्वस्त रहते हैं कि जो काम वे करने जा रहे हैं वह अच्छा है और ऐसा किया जाना चाहिए। परंतु केवल शंका भर जाहिर करने से सबकुछ मामला गड़बड़ हो जाता है।

किसी भी कार्य को करने के पहले योजनाबद्ध तरीके से चलना चाहिए और सोच-समझकर कार्य करना ही चाहिए पर कई बार ऐसी परिस्थितियां आन पड़ती हैं जब सोचने-समझने का समय नहीं बल्कि केवल निर्णय लेना होता है ऐसे समय व्यक्ति की असल परीक्षा होती है। व्यक्ति परिस्थितियों से डर बहुत जल्दी जाता है और कई बार जरा सी प्रेरणा ही उसे इन विपरित परिस्थितियों से सामना करने की प्रेरणा भी दे देती है।

' स्वामी विवेकानंद' जब देशाटन पर निकले थे तब काशी भी गए थे। दिन भर सत्संग चलता रहता था। विभिन्न आश्रमों में जाना लगा ही रहता था। स्वामीजी का नियम था कि प्रतिदिन अलग-अलग मंदिरों में दर्शन करने जाते थे। स्वामीजी खासतौर पर दुर्गा देवी के मंदिर जरूर जाते थे। एक दिन मंदिर से दर्शन कर बाहर आए और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े तब उनके पीछे बंदरों का झुंड लग गया।

स्वामीजी चोगा पहनते थे और बंदरों को लगा कि चोगे की जेबों में खाने के लिए कुछ रखा हो। स्वामीजी ने बंदरों के इस झुंड से पीछा छुड़ाने के लिए अपने कदमों को तेज कर दिया परंतु बंदर थे कि मान ही नहीं रहे थे वे और तेजी से आगे बढ़ते आ रहे थे। स्वामीजी ने कदम और तेज कर दिए और एक स्थिति ऐसी आ गई कि स्वामीजी को दौड़ लगाना पड़ी। वे काफी देर तक भागते रहे। अचानक एक मोड़ पर एक वृद्ध महात्मा सामने से आ रहे थे उन्होंने स्वामीजी की स्थिति देखी और कहा कि नौजवान, रुक जाओ, भागो नहीं बंदरों की ओर मुंह करके खड़े हो जाओ। इस वाक्य ने स्वामीजी को प्रेरणा दी और वे बंदरों की ओर मुंह करके खड़े हो गए।

यह देखकर बंदर ठिठक गए और कुछ ही समय में इधर-उधर हो गए। इस घटना से स्वामीजी ने भी प्रेरणा ली कि जब भी विपरित परिस्थितियां सामने हों तब उसके सामने मुंह करके खड़े हो जाओ और मन से डर निकालकर उनका सामना करोगे तब सफलता निश्चित है।

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