बाल रूप कन्याएँ साक्षात शक्ति स्वरूपा

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नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। ऐसे श्रद्धालुओं की कमी नहीं है, जो पूरे नौ दिनों तक कन्या पूजन करते हैं। वहीं ज्यादातर लोग अष्टमी के दिन विधि-विधान से कन्या पूजन कर उन्हे भोजन कराते हैं। शक्ति साधना के पर्व में कुँवारी पूजन का महत्वपूर्ण स्थान है।

स्नेह, सरलता और पवित्रता की दृष्टि से कुँवारी कन्याएँ साक्षात शक्ति स्वरूपा हैं। अन्य पूजन और अनुष्ठानों में ब्रम्हभोज की प्रधानता बताई गई है, लेकिन नवरात्रि में शक्ति की उपासना के दौरान अनुष्ठानों की पूर्णता के लिए कन्या पूजन की प्राथमिता बताई गई है।

पं. ब्रम्हदत्त मिश्र का कहना है कि शक्ति का प्रादुर्भाव कुँवारी रूप में हुआ है जिसे देवताओं ने अंशभूत शक्तियाँ प्रदान की है। वृहन्नली तंत्र के अनुसार पूजित कुँवारियाँ विघ्न, भय और उत्कृष्ठ शत्रु को नष्ट करने में सक्षम हैं। कुँवारिका पूजन में जाति भेद का विचार करना भी अनुचित है।

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दुर्गाष्टमी और महानवमीं के दिन जो साधक कुँवारी कन्याओं का पूजन कर कन्याओं को अन्न, वस्त्र और जल अर्पण करते हैं, उसका फल अन्न मेरू के समान और जल समुद्र के समान अक्षुण्य और अनंत होता है।

पं. मिश्र ने बताया कि नवरात्र अनुष्ठान में साधक को दो से दस वर्ष की दस कन्याओं के साथ भैरव पूजन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमुति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की रोहिणी, सात वर्ष की चंद्रिका, आठ वर्ष की शांभवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा मानी गई है।

अत: दस वर्ष तक की कन्याओं को ही पूजन में शामिल किया जाना चाहिए। शास्त्र में 11 वर्ष से अधिक आयु वाली कन्याओं के पूजन को शास्त्र सम्मत नहीं माना गया है।

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