अंतरिक्ष में भारत की उपस्थिति

Webdunia
- वेबदुनिया डेस्क
चंद्रमा पर पहले मानव रहित अंतरिक्षयान के प्रक्षेपण से दशकों पहले 1962 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की देखरेख में भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन हुआ था। तब से यह शुरुआत चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान भेजने तक आ पहुँची है और यह अंतरिक्ष में भारत की उपस्थिति का सिलसिला लगातार चलता रहा है।

इस दौरान भारत ने अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने के लिए जो अहम पड़ाव या मील के पत्थर पार किए हैं, उनका महत्व भी कम नहीं है। आज यह भी याद करने का दिन है कि वर्ष 1965 में थुम्बा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान (एसएसटीसी) की स्थापना हुई थी और इससे सबसे पहले प्रक्षेपित किया जाने वाला रॉकेट एक साइकिल पर लाया गया था।

परीक्षण के लिए 1968 में सैटेलाइट कम्युनिकेशन अर्थ स्टेशन की स्थापना की गई जिसकी उपयोगिता और इसका विस्तार आज भी जारी है।

वर्ष 1969 में 15 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन किया गया जहाँ पर सबसे पहले देश में अंतरिक्ष अनुसंधान की नींव डाली गई। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि जिस श्रीहरिकोटा नाम की जगह से चंद्रयान भेजा गया, उसका अस्तित्व भी अक्टूबर, 1971 में सामने आया। 2003 में इसका नाम सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया।

इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सरकार ने 1972 में सरकार ने केंद्रीय स्तर पर एक अंतरिक्ष विभाग का गठन किया, हालाँकि इस दौरान देश के कुछ अन्य शहरों में अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़े केंद्रों का निर्माण और कामकाज की शुरुआत भी की गई जिन्हें बाद में महत्वपूर्ण संस्थानों के रूप में जाना गया है।

एक अप्रैल, 1975 को केंद्र सरकार इसरो को सरकारी संगठन के तौर पर मान्यता देती है और इसी वर्ष अमेरिकी उपग्रह एटीएस-6 की मदद से देश में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत होती है। अठारह दिन बाद ही 1975 में भारत का पहला उपग्रह- आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा गया।

उपग्रह आर्यभट्ट के छोड़े जाने के बाद कुछ यूरोपीय देशों की मदद से 1977 में भारत की सैटेलाइट टेलिकम्युनिकेशन परियोजना की शुरुआत हुई और दो वर्ष बाद सात जून, 1979 को पृथ्वी के अध्ययन के लिए भारत का उपग्रह भास्कर-1 पृथ्वी की कक्षा में छोड़ा गया।

इसी वर्ष यानी 10 अगस्त, 1979 को एसएलवी-3 लॉन्चर का प्रयोगात्मक तौर पर भारत ने परीक्षण किया और आगामी वर्षों में 18 जुलाई, 1980 को एसएलवी-3 और रोहिणी आरएस-1 उपग्रह को भारत अंतरिक्ष में छोड़ा गया। रोहिणी को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित भी किया गया।

इस समय तक पहला पूर्णत: विकसित एसएलवी-3 वर्ष 1981 में प्रक्षेपित किया गया। 31 मई, 1981 को आरएस-डी-1 भी पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। इसी वर्ष 19 जून को एप्पल नाम का सैटेलाइट भी प्रक्षेपित किया गया। नवंबर, 1981 में भास्कर-2 को अंतरिक्ष भें भेजा गया।

यह वह समय था जब भारत इनसैट के विकास तक पहुँच गया और 10 अप्रैल, 1982 को इनसैट-1 ए का प्रक्षेपण किया गया। अगले वर्ष 1983 में भारत के सूचना तकनीक विकास में अहम पड़ाव आए और एसएलवी-3 और आरएस-डी-2 का प्रक्षेपण किया गया।

इनसैट-1-बी के प्रक्षेपण के साथ ही इनसैट तकनीक को हरी झंडी मिली और 1984 तक इनसैट तकनीक से दूरसंचार, टेलीविजन जैसी सुविधाएँ जुड़ती हैं और इनके प्रसार का मार्ग प्रशस्त होता है।

पहले एएसएलवी लॉन्चर की मदद से 24 मार्च, 1987 को रोहिणी उपग्रह श्रंखला-1 को अंतरिक्ष में भेजा जाता है और अगले ही वर्ष 1988 में रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में एक उपलब्धि हासिल की गई।

आईआरएस-1-ए का प्रक्षेपण हुआ और भारत रिमोट सेंसिंग सिस्टम को स्थापित करने में सफल होता है। 22 जुलाई 1988 को इनसैट-1-सी भी अंतरिक्ष में भेजा जाता है।

कुछ समय बाद ही जून, 1990 में इनसैट-1-डी का प्रक्षेपण किया गया और 1-डी के बाद इनसैट श्रंखला की दूसरी पीढ़ी की शुरुआत हुई। 10 जुलाई, 1992 को इनसैट-2 ए का प्रक्षेपण किया जाता है और जिनके क्रमिक विकास के तौर पर वर्ष 1993 में इनसैट 2बी, आईआरएस-1ई और फिर 1994 में आईआरएस-पी2 का प्रक्षेपण किया गया।

सात दिसंबर, 1995 को इनसैट-2 सी उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा गया। अगले दो वर्ष की अवधि में लॉन्चर पीएसएलवी से चंद्रयान को छोड़ा जाना था उसे भी 1997 में विकसित किया गया और इसी की मदद से आईआरएस-1डी अंतरिक्ष में स्थापित किया गया।

वर्ष 1997 में इनसैट 2 डी और 1999 में इनसैट-2 ई का प्रक्षेपण भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अब दुनिया के पटल पर लाना शुरू कर देता है और अब स्थिति यह आ गई है कि भारत दूसरे देशों के उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने का काम शुरु कर देता है। इसी का परिणाम है कि 1999 में ही भारत, कोरिया और जर्मनी के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजता है।

इनसैट की तीसरी पीढ़ी वर्ष 2000 में इनसैट-3 बी के साथ शुरू होती है। इसके बाद 2001 में भारत पीएसएलवी-3 सी विकसित करके प्रक्षेपित करता है। वर्ष 2001 में ही जीएसएलवी लॉन्चर का पहली बार प्रयोग किया जाता है।

यह वह समय है जब भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम गति पकड़ लेता है। वर्ष 2002 में इनसैट-3 सी, कल्पना-1 उपग्रह का प्रक्षेपण होता है। वर्ष 2003 में इनसैट-3ए और 3 ई का प्रक्षेपण किया जाता है।

वर्ष 2005 में हामसैट और कार्टोसेट जैसे उपग्रहों का प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान को आगे बढ़ाता है और इसी वर्ष इनसैट 4 ए का प्रक्षेपण होता है। जीएसएलवी लॉन्चर की मदद से इनसैट- 4सी को अंतरिक्ष में भेजा जाता है।

अंतरिक्ष अनुसंधान और तकनीक विकास के क्रम में भारत का आगे जाने का सिलसिला जारी रहता है जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2007 में बेहतर तकनीक के साथ कुछ अन्य देशों के उपग्रह भारत अंतरिक्ष में भेजता है।

वर्ष 2007 तक एकसाथ सर्वाधिक आठ उपग्रह छोड़ने का कीर्तिमान रूस के नाम था। भारत ने 2008 में 28 अप्रैल को एकसाथ 10 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजकर एक नया रिकॉर्ड बनाया और बुधवार यानी 22 अक्टूबर, 2008 को मानवरहित चंद्रयान की अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत कर इस दिशा में एक नई कड़ी जोड़ दी।

भारत अंतरिक्ष अनुसंधान की नई पीढ़ी में प्रवेश कर रहा है और उसने उन चंद देशों में अपना स्थान बना लिया है जिन्होंने अंतरिक्ष में अनुसंधान के नए-नए कीर्तिमान बनाए हैं।

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