जादुई पिटारा व वादे की थैली

Webdunia
रायपुर। जहाँ भाजपा-कांग्रेस से असंतुष्ट नेता छोटे दलों के निशाने पर हैं, वहीं अपना मत का प्रतिशत बढ़ाने के लिए उसने अल्पसंख्यकों को भी रिझाना शुरू कर दिया है। इन कोशिशों के पीछे छोटे दलों की मंशा प्रदेश में सरकार की दावेदारी भले ही न हो, लेकिन वे इस चुनाव के जरिए राजनीतिक पार्टी की मान्यता को पुख्ता करना जरूर चाहते हैं। मुस्लिम मतों का यह विभाजन नए सीमकरण पैदा कर सकता है।

अपनी ताकत के दम पर उत्तरप्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों में राष्ट्रीय पार्टियों को तीसरे और चौथे मुकाम पर खड़ा करने वाली बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी इस विधानसभा चुनाव में सक्रिय हैं। इसके अलावा भारतीय जनशक्ति, भाकपा, माकपा, छमुमो, छत्तीसगढ़ विकास पार्टी आदि भी चुनाव समर में हैं। कांग्रेस और भाजपा को नुकसान पहुँचाने के एकमात्र उद्देश्य से चुनाव मैदान में उतर रहीं इन पार्टियों ने सबसे पहले मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी की है। यही वजह है कि बसपा ने लखनऊ में मुस्लिम सम्मेलन कर मुस्लिम नेताओं को बुलाया। बसपा छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बटोरने की फिराक में है। इसके लिए पार्टी ने बाकायदा रणनीति बनाई है। प्रदेश अध्यक्ष दाऊराम रत्नाकर के मुताबिक उत्तरप्रदेश में मुस्लिम महासम्मेलन में जारी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के संदेश वाली किताबें यहाँ भी बाँटी जाएँगी।

मुस्लिमों के बीच पॉम्पलेट के जरिए पार्टी का संदेश पहुँचाना शुरू कर दिया गया है। पिछले शुक्रवार को बसपा कार्यकर्ताओं ने मस्जिदों में नमाज अदा करने पहुँचे मुस्लिम समाज के लोगों में पॉम्पलेट बँटवाया। इसमें सवाल किया गया है कि मुस्लिम समाज को कांग्रेस व भाजपा ने क्या दिया और किस लायक समझा? इन पार्टियों के लिए अल्पसंख्यक वोट बैंक व सत्ता में काबिज होने का साधन मात्र है। आज फिर जादुई पिटारा व आश्वासनों की थैली लिए दोनों पार्टियाँ मुस्लिमों को लुभाने सक्रिय हैं। बसपा ने मुस्लिमों से गुजारिश की है कि वे सोचें कि क्या वे मोहरे हैं कि जैसा चाहे वैसा उनके इशारे पर चल पड़ें? आज सत्ता में भागीदारी माँगने की जरूरत है। मुस्लिम समाज का सम्मान करने वाला कोई राजनीतिक दल है तो वह बसपा है।

जानकार बताते हैं कि सपा-बसपा राज्य स्तरीय मान्यता के लिए लालायित हैं। इसके लिए उन्हें कुल मतदान के छह प्रतिशत वोट चाहिए। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा छत्तीसगढ़ विधानसभा में दो विधायक पहुँचाकर अपनी ताकत दिखा चुकी है, जबकि 1998 के चुनाव में तीन बसपा विधायक पहुँचे थे।

सपा कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका है। प्रदेशव्यापी मान्यता हासिल करने के लिए ये पार्टियाँ अधिक से अधिक वोटों पर कब्जा करना चाहती हैं। (नईदुनिया)

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