आदमी को प्यार दो...

Webdunia
- नीर ज

ND
सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह ह ै,
भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह ह ै,
राह को सँवार द ो,
निगाह को निखार द ो,

आदमी हो तुम कि उठा आदमी को प्यार द ो,
दुलार दो ।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो ।

तुम हो एक फूल कल जो धूल बनके जाएग ा,
आज है हवा में कल ज़मीन पर ही आएग ा,
चलते व़क्त बाग़ बहुत रोएगा-रुलाएग ा,
ख़ाक के सिवा मगर न कुछ भी हाथ आएग ा,

ज़िंदगी की ख़ाक लिए हाथ मे ं,
बुझते-बुझते सपने लिए साथ मे ं,
रुक रहा हो जो उसे बयार द ो,
चल रहा हो उसका पथ बुहार दो ।
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार द ो,
दुलार दो ।

ज़िंदगी यह क्या है- बस सुबह का एक नाम ह ै,
पीछे जिसके रात है और आगे जिसके शाम ह ै,
एक ओर छाँह सघ न, एक ओर घाम ह ै,
जलना-बुझन ा, बुझना-जलना सिर्फ़ जिसका काम ह ै,
न कोई रोक-थाम ह ै,

ख़ौफनाक-ग़ारो-बियाबान मे ं,
मरघटों के मुरदा सुनसान मे ं,
बुझ रहा हो जो उसे अंगार द ो,
जल रहा हो जो उसे उभार द ो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार द ो,
दुलार दो ।

ज़िंदगी की आँखों पर मौत का ख़ुमार ह ै,
और प्राण को किसी पिया का इंतज़ार ह ै,
मन की मनचली कली तो चाहती बहार ह ै,
किंतु तन की डाली को पतझर से प्यार ह ै,
क़रार ह ै,

पतझर के पीले-पीले वेश मे ं,
आँधियों के काले-काले देश मे ं,
खिल रहा हो जो उसे सिंगार द ो,
झर रहा हो जो उसे बहार द ो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार द ो,
दुलार दो ।

प्राण एक गायक ह ै, दर्द एक तराना ह ै,
जन्म एक तारा है जो मौत को बजाता ह ै,
स्वर ही रे! जीवन ह ै, साँस तो बहाना ह ै,
प्यार की एक गीत है जो बार-बार गाना ह ै,
सबको दुहराना ह ै,

साँस के सिसक रहे सितार प र
आँसुओं के गीले-गीले तार प र,
चुप हो जो उसे ज़रा पुकार द ो,
गा रहा हो जो उसे मल्हार द ो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार द ो,
दुलार दो ।

एक चाँद के बग़ैर सारी रात स्याह ह ै,
एक फूल के बिना चमन सभी तबाह ह ै,
ज़िंदगी तो ख़ुद ही एक आह है कराह ह ै,
प्यार भी न जो मिले तो जीना फिर गुनाह ह ै,

धूल के पवित्र नेत्र-नीर स े,
आदमी के दर् द, दा ह, पीर स े,
जो घृणा करे उसे बिसार द ो,
प्यार करे उस पै दिल निसार द ो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार द ो,
दुलार दो ।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो॥

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