विश्व चाहे या न चाहे

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- गोपालदास "नीरज"

ND
विश्व चाहे या न चाह े,
लोग समझें या न समझे ं,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे ।

हर नज़र ग़मगीन ह ै, हर होठ ने धूनी रमा ई,
हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कला ई,
ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों मे ं
कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ा ई,
फिर दीयों का दम न टूट े,
फिर किरन को तम न लूट े,
हम जले हैं तो धरा को जगमगा कर ही उठेंगे ।
विश्व चाहे या न चाहे....

हम नहीं उनमें हवा के साथ जिनका साज़ बदल े,
साज़ ही केवल नहीं अंदाज़-औ-आवाज़ बदल े,
उन फ़कीरों-सिरफिरों के हमसफ़र ह म, हमउम्र ह म,
जो बदल जाएँ अगर तो तख़्त बदले ताज बदल े,
तुम सभी कुछ काम कर ल ो,
हर तरह बदनाम कर ल ो,
हम कहानी प्यार की पूरी सुनाकर ही उठेंगे ।
विश्व चाहे या न चाहे...

नाम जिसका आँक गोरी हो गई मैली सियाह ी,
दे रहा है चाँद जिसके रूप की रोकर गवाह ी,
थाम जिसका हाथ चलना सीखती आँधी धरा प र
है खड़ा इतिहास जिसके द्वार पर बनकर सिपाह ी,
आदमी वह फिर न टूट े,
वक़्त फिर उसको न लूट े,
जिन्दगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे ।
विश्व चाहे या न चाहे....

हम न अपने आप ही आए दुखों के इस नगर मे ं,
था मिला तेरा निमंत्रण ही हमें आधे सफ़र मे ं,
किन्तु फिर भी लौट जाते हम बिना गाए यहाँ स े
जो सभी को तू बराबर तौलता अपनी नज़र मे ं,
अब भले कुछ भी कहे त ू,
खुश कि या नाखुश रहे त ू,
गाँव भर को हम सही हालत बताकर ही उठेंगे ।
विश्व चाहे या न चाहे....

इस सभा की साज़िशों से तंग आक र, चोट खाक र
गीत गाए ही बिना जो हैं गए वापिस मुसाफ़ि र
और वे जो हाथ में मिज़राब पहने मुश्‍किलों क ी
दे रहे हैं जिन्दगी के साज़ को सबसे नया स्व र,
मौर तुम लाओ न ला ओ,
नेग तुम पाओ न पा ओ,
हम उन्हें इस दौर का दूल्हा बनाकर ही उठेंगे ।
विश्व चाहे या न चाहे....

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