वर्षारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही क्यों?

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चैत्र ही एक ऐसा माह है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। इसी मास में उन्हें वास्तविक मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। वैशाख मास, जिसे माधव कहा गया है, में मधुरस का परिणाम मात्र मिलता है। इसी कारण प्रथम श्रेय चैत्र को ही मिला और वर्षारंभ के लिए यही उचित समझा गया।

जितने भी धर्म कार्य होते हैं, उनमें सूर्य के अलावा चंद्रमा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन का जो मुख्य आधार अर्थात वनस्पतियां हैं, उन्हें सोम रस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसीलिए इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है।

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शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही चंद्र की कला का प्रथम दिवस है। अतः इसे छोड़कर किसी अन्य दिवस को वर्षारंभ मानना उचित नहीं है।

संवत्सर शुक्ल से ही आरंभ माना जाता है, क्योंकि कृष्ण के आरंभ में मलमास आने की संभावना रहती है जबकि शुक्ल में नहीं।

ब्रह्माजी ने जब सृष्टि का निर्माण किया था तब इस तिथि को 'प्रवरा' (सर्वोत्तम) माना था। इसलिए भी इसका महत्व ज्यादा है।

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