अमृता-इमरोज के रिश्तों पर एक नई किताब

'इन द टाइम्स ऑफ लव एंड लाँगिंग’ का आगमन

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पंजाबी की मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम और उनके करीबी इमरोज का रिश्ता कितना गहरा था इसका अंदाजा उनके खतों से लगाया जा सकता है। चार दशकों से भी लंबे अरसे तक चली उनकी खतों-किताबत को अब एक किताब की शक्ल में पेश किया गया है। किताब इस बात का खुलासा करती है कि वे दोनों किस कदर एक-दूसरे को चाहते थे।

अमृता के आखिरी लम्हों तक उनका साथ निभाने वाले इमरोज कहते हैं 'हम एक दूसरे को बेइंतहा चाहते थे। हम साथ रहते थे लेकिन एक ही घर में हमारे अलग-अलग कमरे थे। उसके बच्चे मेरे थे और हमें कभी ऐसा नहीं लगा कि हमारे अपने बच्चे होने चाहिए।' 'इन द टाइम्स ऑफ लव एंड लाँगिंग’ नाम से यह किताब महिलाओं को अपनी रचनाओं के केंद्र में रखने वाली इस कवयित्री के मरने के चार साल बाद आई है।

इमरोज पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं ‘उसे रात देर तक पढ़ने की आदत थी और मैं उसके लिए रात के एक बजे चाय बनाने के लिए उठा करता था। उसने मुझे कभी शुक्रिया नहीं कहा और मैंने कभी इसे जताया नहीं। कुछ ऐसा था हमारा रिश्ता खामोश मगर खूबसूरत।

अमृता सबसे ज्यादा ‘पिंजर’ के लिए जानी गईं। ‘पिंजर’ में ‘पूरो’ का किरदार औरतों पर होने वाली हिंसा को बयान करता था। किताब पर साल 2003 में डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने इसी नाम से एक फिल्म बनाई जिसे बेहद सराहा गया। ‘पिंजर’ में उर्मिला मातोंडकर ने पूरो के किरदार को जीवंत कर दिया। इमरोज कहते हैं ‘मैं उससे उम्र में छोटा था और वह दो बच्चों के साथ अपनी शादीशुदा जिंदगी से नाखुश। हम दोनों ने एक दूसरे में अपना सहारा ढूँढ लिया। हम फिक्रमंद थे कि समाज इसे कैसे लेगा लेकिन एक रोज मैंने उसे कह ही दिया कि मैं ही तुम्हारा समाज हूँ और तुम मेरी।'

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साल 2005 में अमृता के गुजर जाने के बाद इमरोज ने भी अपने दिल के हाल को नज्मों की शक्ल दी। वह कहते हैं ‘मोहब्बत कोई फलसफा नहीं है। यह जिंदगी जीने का तरीका है। मेरी प्रेम-कहानी मेरी नज्मों में अब भी जिंदा है। उसके जाने के बाद मैंने लिखना शुरू कर दिया।'

उन दिनों की जिंदगी की कशमकश का जिक्र करते हुए इमरोज ने बताया 'मैं एक संघषर्रत चित्रकार था और वह दुनिया भर में मशहूर थी। अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ मेरे लिए मुश्किल था तो मैं उसकी जरूरतें कैसे पूरी करता लेकिन हम एक-दूसरे से प्यार करते थे और इसे साबित करने की कोई जरूरत नहीं थी।'

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