कवि रहमान राही को ज्ञानपीठ पुरस्कार

स्मृति आदित्य
ज्ञानपीठ की घोषणा के बाद उनका कश्मीरी भाषा प्रेम कुछ इस तरह अभिव्यक्त हुआ - 'मैं इसे अपनी कविताओं के प्रति व्यक्त सम्मान के रूप में देखता हूँ लेकिन उससे भी अधिक यह मेरी कश्मीरी भाषा का सम्मान है।'       
कश्मीर की वादियाँ इतनी दिलकश और मनोरम हैं कि सीधा-सहज मानव मन भी कवि बन जाए लेकिन इन दिनों कश्मीर के हालात किसी से छुपे नहीं हैं। ऐसे में वहाँ की पीड़ा एक ऐसी कलम के माध्यम से झर रही है जिसके मालिक का नाम है रहमान राही।

रहमान राही किसी संवेदनशील पाठक के लिए अपरिचित नाम नहीं है। साहित्य अकादमी, भारत सरकार की फेलोशिप, पद्‍मश्री, कबीर सम्मान के बाद उनके खाते में ज्ञानपीठ पुरस्कार का सम्मान दर्ज हुआ है। इस कश्मीरी साहित्यकार की दर्द में डूबी ले‍किन बेबाक-बेलौस अभिव्यक्ति का स्तर इस ऊँचाई पर है कि सम्मान स्वयं उन तक पहुँच कर सम्मानित होता है।

  रहमान राही किसी संवेदनशील पाठक के लिए अपरिचित नाम नहीं है। साहित्य अकादमी, भारत सरकार की फेलोशिप, पद्‍मश्री, कबीर सम्मान के बाद उनके खाते में ज्ञानपीठ पुरस्कार का सम्मान दर्ज हुआ है।      
उर्दू, कश्मीरी, फारसी भाषा में वे सहजता से अभिव्यक्त हुए हैं। उनकी निर्भीक कविताओं के पहले संग्रह 'सनुवैन्य साज' ने पर्याप्त लोकप्रियता अर्जित की लेकिन उन्हें सशक्त पहचान मिली 'नवरोज-ए-सबा' के आने से। धार्मिक हो या सांप्रदायिक जड़ता-कट्‍टरता के विरूद्ध उन्होंने जी भर कर और जी खोल कर लिखा।

अब तक लगभग दो दर्जन पुस्तकों में उनकी प्रखर कविताएँ सुरक्षित हैं।

श्रीनगर के गुंज में जन्मे राही के पिता की असमय मौत ने उन्हें झकझोर दिया। ननिहाल में हुई परवरिश के दौरान एक पुस्तक विक्रेता से परिचय हुआ। यहीं उनका साहित्य प्रेम पनपा। जम्मू यूनिवर्सिटी से फारसी और अँग्रेजी में एम. ए. करने के बाद लोकनिर्मा ण विभाग में क्लर्क की नौकरी की।

अनुवादक, आलोचक एवं कवि रहमान राही पहले कश्मीरी हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जा रहा है।

रहमान राही की प्रतिभा पत्रकार और अध्यापक के रूप में भी अभिव्यक्त हुई है। कश्मीरी भाषा को सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए उनका संघर्ष भी उल्लेखनीय है। ज्ञानपीठ की घोषणा के बाद उनका कश्मीरी भाषा प्रेम कुछ इस तरह अभिव्यक्त हु आ -

' मैं इसे अपनी कविताओं के प्रति व्यक्त सम्मान के रूप में देखता हूँ लेकिन उससे भी अधिक यह मेरी कश्मीरी भाषा का सम्मान है।'

रहमान / व्यक्तित्व

जन्म - 6 मार्च 1925
जन्मस्थान - गुंज (श्रीनगर)
शिक्षा - एम. ए. (फारसी) - 1952
एम. ए. (अँग्रेजी) - 1962

रहमान राही के लफ़्ज़ों में -

कभी छोड़ी हुई मंजिल भी याद आती है राही को,
खटक सी है जो सीने में ग़मे मंजिल ना बन जाए

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