सहज हास्य के स्तरीय कवि आदित्य

ओमप्रकाश आदित्य : सड़क दुर्घटना में नहीं रहे

स्मृति आदित्य
वे हँसते-हँसाते इस तरह चले जाएँगे किसी ने नहीं सोचा था। इस सड़क दुर्घटना में अगर वे बच जाते तो यकीनन इस पर भी वे कोई हास्य रचना तैयार कर लेते। उनमें त्वरित हास्य का ऐसा प्यारा गुण था कि आशु कविता जुबान से सहज झरती रहती थी।      
वे घर से निकले होंगे अपनी नवीनतम हास्य रचनाओं का पिटारा लेकर। नहीं जानते थे आँसुओं का सैलाब देकर यूँ चले जाएँगे। जाने-माने कवि ओम प्रकाश आदित्य एक सड़क दुर्घटना में चल बसे। उनका इस तरह जाना निश्चित रूप से ह्रदय विदारक है। मंच पर जिनकी उपस्थिति मात्र ही मुस्कुराहट का कारण हुआ करती थी। आज उनके नाम के साथ यह खबर पलकें भिगो देने वाली है।

उन दिनों जब चैनल्स की बाढ़ नहीं हुआ करती थी। एकमात्र दूरदर्शन ही मनोरंजन का साधन हुआ करता था। उस वक्त शैल चतुर्वेदी, ओम प्रकाश आदित्य, अशोक चक्रधर, सुरेन्द्र शर्मा जैसे स्तरीय कवि की विशुद्ध हास्य रस में डूबी रचनाएँ जी बहलाया करती थी। विशेषकर होली के अवसर पर ओम प्रकाश आदित्य को सुनने में खास दिलचस्पी होती थी। उनकी रचना सुनाने की वह धाराप्रवाह शैली, एक- एक पंक्ति में हास्य की ऐसी फुलझडि़याँ कि ठहाके रोके नहीं रूकते थे।

आदित्य जी का एक निराला अंदाज था। वे पहले एक साँस में गाते हुए कविता प्रस्तुत करते फिर बड़े धीरे से फुसफुसाते हुए कविता की वह पंक्ति गुनगुनाते जो सारे माहौल में खिलखिलाती हँसी का स्फुरण कर देती। उनकी कविता का तीखा व्यंग्य इतनी सहजता से सामने आता कि चुभता भी और अहसास भी नहीं होता लेकिन मर्म की गहराई भीतर तक पहुँच जाती। उनकी एक कविता है मंच से चीखने-चिल्लाने वाले कवियों के लिए-

शेर से दहाड़ो मत,
हाथी से चिंघाड़ो मत
ज्यादा गला फाड़ो मत, श्रोता डर जाएँगे
घर के सताए हुए आए हैं बेचारे यहाँ
यहाँ भी सताओगे तो ये किधर जाएँगे?

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ये कवि आदित्य की जिन्दादिली और नटखट स्वभाव का उदाहरण है कि इस कविता को सुनाते हुए वे खुद को भी उन्हीं कवि में शामिल करते थे। चुटीला अंदाज और चेहरे से जाहिर होती विनम्रता दोनों का विलक्षण संयोग था उनमें।

वे हँसते-हँसाते इस तरह चले जाएँगे किसी ने नहीं सोचा था। इस सड़क दुर्घटना में अगर वे बच जाते तो यकीनन इस पर भी वे कोई हास्य रचना तैयार कर लेते। उनमें त्वरित हास्य का ऐसा प्यारा गुण था कि आशु कविता जुबान से सहज झरती रहती थी। विभिन्न चैनलों पर हास्य कार्यक्रमों के आने बाद से तो अक्सर ही उनको सुनने का अवसर मिल जाया करता था।

आदित्य जी के यूँ चले जाने से स्तरीय और सहज हास्य के एक सम्मानीय कवि का स्थान रिक्त हो गया है। आदित्य जी की जगह कोई नहीं ले सकता। हास्य कवि की जो जगह उन्होंने अपने लिए बनाई थी आज वह जगह भी उनके साथ चली गई। फूहड़ता के इस दौर में विशुद्ध हास्य बचाए रखने के लिए आदित्य जी की उपस्थिति कितनी जरूरी थी यह हर काव्य प्रेमी को महसूस हो रहा होगा। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

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