कोमल सर्दी की गुलाबी ठिठुरन में नर्म शॉल के गर्म एहसास को लपेटे तुम्हारी नीली छुअन याद आती है,
याद जो बर्फीली हवा के तेज झोंकों के साथ तुम्हें मेरे पास लाती है, तुम नहीं हो सकते मेरे यह कड़वा आभास बार-बार भूला जाती है,
जनवरी की शबाब पर चढ़ी ठंड कितना कुछ लाती है बस, एक तुम्हारे सिवा, तुम जो बस दर्द ही दर्द हो कभी ना बन सके दवा, नहीं जान सके तुम्हारे लिए मैंने कितना कुछ सहा, फिर भी कुछ नहीं कहा...