चांद में बैठी अम्मा से बतियाऊंगा एक दिन सूरज से कहूंगा कि भैया सुस्ता लिया करो बीच-बीच में धरती से आकाश तक तान दूंगा एक कनात जहां सारे तारे सुस्ताएंगे सारे दिन और बच्चे आकाशगंगा में डुबकियां लगाएंगे एक दिन कहूंगा समुद्र से कि उतर आए मोहल्ले के नल में पहाड़ों से कहूंगा कि इन गर्मियों में रह जाएं यहां महीने दो महीने हवा से कहूंगा कि छुअम-छुआई खेले बच्चों के साथ जंगलों से कहूंगा कि चले आएं हमारी बालकनी तक एक दिन कहूंगा किताबों से कि बिखरा दें हमारे आंगन में दुनिया के सारे रोचक किस्से एक दिन मिलूंगा ईश्वर से भी देखूंगा गरम चाय पीते हुए अब भी सुड़कता है वह या कि बिना डाले प्याली में गड़प लेता है बेआवाज हाथ मिलाएगा तो थोड़ा ज्यादा दबाते हुए कहूंगा उससे छोड़ जाए सारे जादू हमारी छत पर बच्चे बोर हो रहे हैं गरमी की छुट्टियों मे ं।