तू सलामत रहे गुलमोहर

सहबा जाफरी

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शाम ढलती है यूँ गुलमोह र- गुलमोहर
तेरी यादों से दहका हो ज्यों गुलमोहर

ख्वाब बुनती हैं यूँ मेरी तन्हाईयाँ
जैसे गर्मी की शामों का हो गुलमोहर

इश्क, मौसम, परिंदे ओ परछाइयाँ
गाँव, आँगन ओ तन्हा खड़ा गुलमोहर

ख्वाब आँखों का सच भी कभी हो खुदा
मै, मेरी ज़िंदगी और जवाँ गुलमोहर

इस शहर को मयस्सर कहाँ वो खुशी
आम, बरगद ओ संग-संग हरा गुलमोहर

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कल तलक जो खडा था सड़क की तरफ
हाय कैसे वो कट कर गिरा गुलमोहर

दर्द होता है तुझको मेरी चोट का
तुझसे रिश्ता है क्या तू बता गुलमोहर

मेरी तन्हाई का तू ही साथी है एक
तू सलामत रहे है दुआ गुलमोह र।
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