*पृथ्वी पर जन्मे असंख्य लोगों की तरह मिट जाऊँगा मैं, मिट जाएँगी मेरी स्मृतियाँ मेरे नाम के शब्द भी हो जाएँगे एक दूसरे से अलग कोश में अपनी अपनी जगह पहुँचने की जल्दबाजी में अपने अर्थ समेट लेंगे व े!
*औरत ने कहा मर्द ने कुछ भी नहीं सुना मर्द ने कुछ भी नहीं कहा औरत ने सुन लिया सब कुछ!
*एक बच्चा कि सपना औरत और मर्द का मिला जुला पूरा का पूरा आदमी बनकर खड़ा है!
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*प्यार था मुस्कान में, चुप्पी में यहाँ तक कि खिड़की में भी प्यार था!
*हाथी की नंगी पीठ पर घुमाया गया दाराशिकोह को गली गली और दिल्ली चुप रही लोहू की नदी में खड़ा मुस्कुराता रहा नादिर शाह और दिल्ली चुप रही साभार : कृत्या प्रकाशन