जगन्नाथ रथयात्रा : एक नजर में

श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र जगन्नाथ रथयात्रा

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Jagannath Rath Yatra

भारत भर में मनाए जाने वाले महोत्सवों में जगन्नाथपुरी की रथयात्रा सबसे महत्वपूर्ण है। यह परंपरागत रथयात्रा न सिर्फ हिन्दुस्तान, बल्कि विदेशी श्रद्धालुओं के भी आकर्षण का केंद्र है। श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना गया है।

पुरी का जगन्नाथ मंदिर भक्तों की आस्था केंद्र है, जहां वर्षभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। जो अपनी बेहतरीन नक्काशी व भव्यता लिए प्रसिद्ध है। यहां रथोत्सव के वक्त इसकी छटा निराली होती है, जहां प्रभु जगन्नाथ को अपनी जन्मभूमि, बहन सुभद्रा को मायके का मोह यहां खींच लाता है। रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का मौका भी मिलता है।

यह दस दिवसीय महोत्सव होता है। इस दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी का श्रीगणेश अक्षय तृतीया को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण से होता है और कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी महीने भर किए जाते हैं।


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* जगन्नाथजी का रथ 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहलाता है। 16 पहियों वाला रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है जिसमें लाल व पीले रंग के कप़ड़े का इस्तेमाल होता है। विष्णु का वाहक गरुड़ इसकी हिफाजत करता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे 'त्रैलोक्यमोहिनी' कहते हैं।

* बलराम का रथ 'तलध्वज' के बतौर पहचाना जाता है, जो 13.2 मीटर ऊंचा 14 पहियों का होता है। यह लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। जिस रस्से से रथ खींचा जाता है, वह बासुकी कहलाता है।

* 'पद्मध्वज' यानी सुभद्रा का रथ। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। रथध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुडा कहते हैं।

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प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास में शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ की रथयात्रा होती है। यह एक बड़ा समारोह है, जिसमें भारत के विभिन्न भागों से श्रद्धालु आकर सहभागी बनते हैं। दस दिन तक मनाए जाने वाले इस पर्व/ यात्रा को 'गुण्डीय यात्रा' भी कहा जाता है।

माना जाता है कि इस रथयात्रा में सहयोग से मोक्ष प्राप्त होता है, अत: सभी कुछ पल के लिए रथ खींचने को आतुर रहते हैं। जगन्नाथ जी की यह रथयात्रा गुंडीचा मंदिर पहुंचकर संपन्न होती है। जगन्नाथपुरी का वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में मिलता है।





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