जब रामकृष्ण कमेटी के सदस्य के सामने पहुंचे तो एक सदस्य ने पूछा- यह कहां तक सच है कि तुम फूल सूंघ कर देवता पर चढ़ाते हो?
इस पर रामकृष्ण परमहंस ने सहज भाव से कहा - मैं बिना सूंघे फूल भगवान पर क्यों चढ़ाऊं? मैं पहले देख लेता हूं कि उस फूल से कुछ सुगंध भी आ रही है या नहीं?
तत्पश्चात दूसरी शिकायत रखी गई - हमने सुना है कि तुम भगवान को भोग लगाने से पहले खुद अपना भोग लगा लेते हो?
रामकृष्ण ने पुन: सहज भाव से जवाब देते हुए कहा - जी, मैं अपना भोग तो नहीं लगाता पर मुझे अपनी मां की बात याद है कि वे भी ऐसा ही करती थीं। जब कोई चीज बनाती थीं तो चख कर देख लेती थीं और फिर मुझे खाने को देती थीं।
उन्होंने फिर कहा मैं भी चख कर देखता हूं। पता नहीं जो चीज किसी भक्त ने भोग के लिए लाकर रखी है या मैंने बनाई है वह भगवान को देने योग्य है या नहीं। उनका सीधे-सादे शब्दों में यह जवाब सुनकर कमेटी के सदस्य निरुत्तर हो गए।