चरमपंथ का मुकाबला फेसबुक से

Webdunia
रविवार, 31 मई 2009 (23:15 IST)
इस्लामी बुराई के प्रति सामूहिक तौर पर सालों तक आँखें मूँदने के बाद सामान्य पाकिस्तानी अब देश में चरमपंथियों का मुकाबला करने के लिए फेसबुक और टेक्स्ट संदेश का सहारा ले रहे हैं।

देश का कुछ हिस्सा तालिबान के हाथ में देख झटका खाने वाले कई पाकिस्तानी आतंकवादियों का मुकाबला करने के प्रति पहले के मुकाबले ज्यादा संकल्पित दिखते हैं क्योंकि देश में नगरीय केंद्र अब आतंकवादियों के बढ़ते हमले का निशाना बन रहे हैं।

पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के स्वात में नाबालिग लड़की की तालिबान की चाबुक से पिटाई का वीडियो देखने से नाराज युवतियाँ खतरा महसूस कर रही हैं क्योंकि पाकिस्तान के सबसे आधुनिक शहर लाहौर में कॉलेज की लड़कियों को चरमपंथियों से अपना सिर ढँकने और जींस पहनना छोड़ने की चेतावनी मिली है।

ग्रामीण महिलाओं को माइक्रोफाइनेंस मुहैया कराने वाले एक प्रतिष्ठान में मुख्य कार्यकारी 35 वर्षीय सदाफी आबिद उस समय सक्रिय हो गईं जब उन्होंने पिछले सप्ताह के लाहौर के जबरदस्त बम विस्फोट के असर को महसूस किया।

द संडे टाइम्स अखबार की खबर के अनुसार उनके जैसे पाकिस्तानियों ने आतंकवादियों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करने की बात सरकार और सेना प्रमुख को बताने के लिए पत्र लेखन अभियान शुरू किया।

हाल तक कभी तालिबान के साथ अपने किसी सरोकार की कल्पना नहीं करने वाली आबिद ने दोस्तों से इन आतंकवादियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर आने को कहा।

ब्रिटिश दैनिक ने उनके मित्रों को उनके संबोधन के हवाले से कहा कि बम का उद्देश्य स्वात से तालिबान के सफाए के सेना के अभियान के खिलाफ जनमत तैयार करना था और हमें आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिए।

पिछले सप्ताह के सिलसिलेवार बम हमलों ने लगता है कि जनता के इस संकल्प को मजबूत किया है क्योंकि एक खुफिया अधिकारी ने चेतावनी दी है लाहौर अब आतंकवादियों के लिए वास्तविक पुरस्कार है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि फेसबुक और टेक्स्ट संदेश के जरिये प्रचार के बाद पिछले दो महीनों में दो बार आबिद और उनके कई दोस्त लाहौर के मध्य में रैलियों के जमा हुए जिनके हाथों में आतंकवाद नहीं के बैनर थे।

आबिद के भाई फरहान राव भी उन लोगों में थे जो अभियान में शामिल हुए। वह पिछले साल मैरियट होटल में थे, जहाँ बम विस्फोट किया गया था। उन्होंने कहा कि इससे पहले हम में से कोई राजनीति में शामिल नहीं था, लेकिन हम महसूस करते हैं कि हमारे देश का पूरा भविष्य दाँव पर है।

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