भारत में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है मुहर्रम

मुहर्रम : हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

Webdunia
- जहीर जैदी

FILE


हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम (अ.ल.) की कुर्बानी हमें अत्याचार और आतंक से लड़ने की प्रेरणा देती है। इतिहास गवाह है कि धर्म और अधर्म के बीच हुई जंग में जीत हमेशा धर्म की ही हुई है। चाहे राम हो या अर्जुन व उनके बंधु हो या हजरत पैगंबर (सल्ल.) के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, जीत हमेशा धर्म की ही हुई है।

चाहे धर्म की ओर से लड़ते हुए इनकी संख्या प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले कितनी ही कम क्यों न हो। सत्य के लिए जान न्यौछावर कर देने की जिंदा मिसाल बने हजरत इमाम हुसैन (अ.ल.) ने तो जीत की परिभाषा ही बदल दी। कर्बला में जब वे सत्य के लिए लड़े तब सामने खड़े यजीद और उसके 40,000 सैनिक के मुकाबले यह लोग महज 123 (72 मर्द-औरतें व 51 बच्चे थे)। इतना ही नहीं, इमाम हुसैन (अ.ल.) के इस दल में तो एक छह माह का बच्चा भी शामिल था)।

सत्य पर, धर्म पर मर मिटने का इससे नायाब उदाहरण विश्व इतिहास में कहीं और ढूंढ़ना कठिन है। इन्हें अपनी शहादत का पता था। यह जानते थे कि आज वह कुर्बान होकर भी बाजी जीत जाएंगे। युद्ध एकतरफा और लोमहर्षक था। यजीद की फौज ने बेरहमी से इन्हें कुचल डाला। अनैतिकता की हद तो यह थी कि शहीदों की लाशों को दफन तक न होने दिया।

इतिहासकार मसूदी ने उल्लेख किया है कि इमाम हुसैन (अ.ल.) छह वर्ष की उम्र तक हजरत पैगंबर (स.) के साथ रहे तथा इस समय सीमा में इमाम हुसैन (अ.स.) को सदाचार सिखाने, ज्ञान प्रदान करने तथा भोजन कराने का उत्तरदायित्व स्वयं पैगंबर (स.) के ऊपर था।

पैगंबर (स.) इमाम हुसैन (अ.स.) से अत्याधिक प्रेम करते थे। इमाम हुसैन (अ.स.) से प्रेम के संबंध में पैगंबर (स.) के इस प्रसिद्ध कथन का शिया व सुन्नी दोनों ही संप्रदायों के विद्वानों ने उल्लेख किया है कि पैगंबर (स.) ने कहा कि हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं। अल्लाह तू उससे प्रेम कर जो हुसैन से प्रेम करें।

हजरत पैगंबर (स.) के स्वर्गवास के बाद हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) तीस वर्षों तक अपने पिता हजरत इमाम अली (अ.स.) के साथ रहे और समस्त घटनाओं व विपत्तियों में अपने पिता का हर प्रकार से सहयोग किया।

हजरत इमाम अली (अ.स.) की शहादत के बाद दस वर्षों तक अपने बड़े भाई इमाम हसन के साथ रहे तथा सन् पचास (50) हिजरी में उनकी शहादत के पश्चात दस वर्षों तक घटित होने वाली घटनाओं का अवलोकन करते हुए मुआविया का विरोध करते रहे। जब सन् साठ (60) हिजरी में मुआविया का देहांत हो गया तथा उसके बेटे यजीद ने गद्दी संभाली और हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) से बैअत (अधीनता स्वीकार करना) करने के लिए कहा, तो आपने बैअत करने से मना कर दिया और इस्लाम की रक्षा के लिए वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए।

हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) ने सन् 61 हिजरी में यजीद के विरुद्ध कियाम (किसी के विरुद्ध उठ खड़ा होना) किया। उन्होंने कहा, 'मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय जीवनयापन करने या उपद्रव फैलाने के लिए कियाम नहीं कर रहा हूं बल्कि केवल अपने नाना (पैगंबर), इस्लाम की उम्मत (इस्लामी समाज) में सुधार के लिए जा रहा हूं तथा मेरा निश्चय मनुष्यों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगंबर (स.) व अपने पिता इमाम अली (अ.स.) की सुन्नत (शैली) पर चलूंगा।

कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत से मुसलमानों के दिलों में यह चेतना जाग्रत हुई कि हमने इमाम हुसैन (अ.स.) की सहायता न करके बहुत बड़ा पाप किया है। इस गुनाह के अनुभव की आग लोगों के दिलों में निरंतर भड़कती चली गई और अत्याचारी शासन को उखाड़ फेंकने की भावना प्रबल होती गई। समाज के अंदर एक नया दृष्टिकोण पैदा हुआ कि अपमानजनक जीवन से सम्मानजनक मृत्यु श्रेष्ठ है।

कहते हैं कि इमाम हुसैन ने यजीद की अनैतिक नीतियों के विरोध में मदीना छोड़ा और मक्का गए। उन्होंने देखा कि ऐसा करने से यहां भी खून बहेगा तो उन्होंने भारत आने का भी मन बनाया लेकिन उन्हें घेर कर कर्बला लाया गया और यजीद के नापाक इरादों के प्रति सहमति व्यक्त करने के लिए कहा गया। लेकिन सत्य की राह पर चलने की इच्छा के कारण उनकी शहादत 10 मुहर्रम 61 हिजरी यानी 10 अक्टूबर 680 ईस्वी को हुई।

ऐसे में भारत के साथ कहीं न कहीं इमाम हुसैन की शहादत का संबंध है- दिल और दर्द के स्तर पर। यही कारण है कि भारत में बड़े पैमाने पर मुहर्रम मनाया जाता है। यह पर्व हिंदू-मुस्लिम एकता को एक ऊंचा स्तर प्रदान करता है। फिर उदारवादी शिया संप्रदाय के विचार धार्मिक सहिष्णुता की महान परंपरा की इस भारत भूमि के दिल के करीब भी हैं। ग्वालियर में जो पांच हजार ताजिए निकाले जाते हैं उनमें से महज 25 ताजिए ही शिया लोगों के होते हैं बाकी हिंदुओं के होते हैं। पूरे देश में इस तरह के असंख्य उदाहरण मिल जाएंगे।

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Vrishabha Sankranti 2024: सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश से क्या होगा 12 राशियों पर इसका प्रभाव

Khatu Syam Baba : श्याम बाबा को क्यों कहते हैं- 'हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा'

Maa lakshmi : मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी पर चढ़ाएं ये 5 चीज़

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

Guru Gochar 2025 : 3 गुना अतिचारी हुए बृहस्पति, 3 राशियों पर छा जाएंगे संकट के बादल

सभी देखें

धर्म संसार

19 मई 2024 : आपका जन्मदिन

19 मई 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Chinnamasta jayanti 2024: क्यों मनाई जाती है छिन्नमस्ता जयंती, कब है और जानिए महत्व

Narasimha jayanti 2024: भगवान नरसिंह जयन्ती पर जानें पूजा के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Vaishakha Purnima 2024: वैशाख पूर्णिमा के दिन करें ये 5 अचूक उपाय, धन की होगी वर्षा