मोहर्रम : रंगबिरंगे ताजियों का आकर्षण...

मोहर्रम पर होता शेर का आकर्षण

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इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार माना जाता है मोहर्रम। इन दिनों ताजिए का निर्माण किया जाता है। भारत में बांस की किमचियों से बने एक ढांचे या आकृति को ताजिया कहा जाता है। यह इराक में बनी हजरत इमाम हुसैन (अलै) की यादगार की प्रतिकृति है।

ताजियों को बनाने में कई महीनों तो कई हफ्तों का समय लगता है। बांस के ढांचे पर रंगीन पन्नियां और ताव लगाए जाते हैं। कुछ स्थानों पर रंगीन बिजली के बल्ब भी सजाए जाते हैं। कुछ स्थानों पर चांदी और अन्य वस्तुओं के भी ताजिये बनाए जाते हैं।

ताजियों में कहीं दुलदुल, बुराक, अलम, अखाड़े, मेहंदी और मानव शेर भी बनाए जाते हैं। अलम (हरे बड़े झंडे) या अखाड़े तो मोहर्रम के हर जुलूस में होते हैं लेकिन मानव शेर का विशेष आकर्षण होता है।

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मानव शेर बहुत छोटे बच्चों से लेकर हर उम्र के मर्द बनते हैं।

इस्लाम में हजरत अली को शेरे-खुदा की उपाधि दी गई थी। उन्हें असदुल्लाह भी कहा जाता था।

ताजियादारी को मानने वालों की मान्यता है कि जब कोई पुत्र की मन्नत पूरी होती है तो उस बच्चे को हर साल मोहर्रम माह में शेर की तरह सजाया जाता है। यह शेर घर-घर जाकर चंदा-रोटी मांगते हैं और ताजियों के जुलूस में तरह-तरह के करतब भी दिखाते हैं।

इसी तरह ताजियों की एक शक्ल दुलदुल (घोड़े) भी हैं। दुलदुल एक मादा खच्चर को कहते हैं। पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल) को इस्कंदरिया के एक शासक ने दुलदुल भेंट किया था जिसे बाद में हजरत मोहम्मद ने अपने दामाद हजरत अली को दे दिया था।

इसी दुलदुल को प्रतीक स्वरूप बनाया जाता है। ये मिट्टी और बांस के बने होते हैं। परी जैसी दिखने वाली घोड़ेनुमा बुराक भी कई शहरों में ताजियों के रूप में बनाई जाती है। बुराक उस ख्याली सवारी को कहते हैं जिस पर सवार होकर हजरत मोहम्मद ने आसमानों की सैर की थी।

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