'सेंड मी-रीड मी' कल्चर का स्वागत !

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इंसान में अगर भावनाएँ हमेशा से रही हैं तो उन्हें व्यक्त करने का ढंग यानी शुभकामनाएँ देने की परंपरा भी हमेशा से रही है। कभी फूल तो कभी पत्तियाँ, तो कभी किसी और ढंग से आदमी शुभकामनाएँ हमेशा व्यक्त करता रहा है। शुभकामनाओं ने एक व्यवस्थित बाजार का रूप ग्रीटिंग कार्ड के जरिए बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में ही लिया। गुजरी सदी के 70 और 80 के दशक में देश के सभी महानगरों में ग्रीटिंग कार्डों की दुकानें खुलीं और कुछ ब्रांडेड दुकानों ने तो ग्रीटिंग कार्ड को एक बड़े कारोबार के रूप में तब्दील कर दिया।

यह प्रचार माध्यमों, बदलती जीवन शैली, बढ़ते शहरीकरण और टीवी के प्रभाव का नतीजा था कि पिछली सदी के अंतिम दशक के पहले तक जहाँ ग्रीटिंग कार्ड साल के कुछ गिने-चुने अवसरों पर ही आदान-प्रदान होते थे, वहीं अब लगभग हर मौके पर इनका आदान-प्रदान होता है। यही नहीं, हर मौके के लिए ग्रीटिंग कार्ड अलग-अलग बनने लगे हैं। यही कारण है कि पिछली सदी के अंतिम दशक से ग्रीटिंग कार्ड ने न सिर्फ शुभकामनाओं के कारोबार में एकछत्र राज किया है, अपितु शुभकामनाओं के ये पर्याय ही बन गए हैं।

इस कम्प्यूटर-मोबाइल युग ने ग्रीटिंग कार्ड की सत्ता को जबर्दस्त चुनौती दी है। विशेषकर मोबाइल के 'सेंड मी-रीड मी' कल्चर ने। एसएमएस ने बिना बोले जीवंत ढंग से भावनाओं को जो आयाम दिया है, वह आयाम ग्रीटिंग में छपी भावनाओं, संवेदनाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा विस्तृत है। यही वजह है कि शुभकामनाओं के बाजार में ग्रीटिंग कार्ड की हैसियत कुछ सालों में कमजोर पड़ गई है। ई-मेल और एसएमएस ने देखते ही देखते शुभकामनाओं का मिजाज ही नहीं, उनके पारंपरिक मार्केट में भी एक बड़ा छेद कर दिया है।

सच बात तो यह है कि आज ग्रीटिंग कार्ड होड़ भले एसएमएस और ई-मेल से ले रहा हो, लेकिन वह हाँफ रहा है। हालाँकि विशेषज्ञों का मानना है कि शुभकामनाओं के कारोबार में ग्रीटिंग कार्ड की हिस्सेदारी कम नहीं होगी, बस फर्क भर पड़ेगा। यह फर्क दिख भी रहा है। आज वही ग्रीटिंग कार्ड बाजार में टिक पा रहा है, जिसमें ताजगी है। उदाहरण के लिए एक पति द्वारा अपनी पत्नी को भेजे गए ग्रीटिंग के शब्दों को देखिए। ग्रीटिंग में लिखा है, 'तुम्हारी उड़ान गगन चूमे'। यह एक पति है जो अपनी पत्नी को दीपावली पर उसके करियर को नई ऊँचाई हासिल करने की शुभकामनाएँ दे रहा है। क्या यह एक दशक पहले भी संभव था?

दुनिया बदल रही है तो शुभकामनाओं के अहसास भी बदल रहे हैं। वैसे सदियों से इन निर्जीव कार्डों के जरिए लोग अपने सजीव और जीवंत संदेश कभी प्यार के लिए, कभी कुशलता के लिए, तो कभी प्रेरणा के लिए भेजते रहे हैं। बाजार में लोगों की इन अनुभूतियों और संवेदनाओं का खास खयाल करते हुए कार्ड बनाने वाली कंपनियों ने नए-नए प्रयोग आजमाए हैं। चूँकि सभी लोग अपनी बात संतुलित शब्दों और विभोर करने वाली भावनाओं में नहीं कह पाते, इसी चीज की कमी ये कार्ड पूरी करते हैं।

अब तो दीपावली और नववर्ष पर अपनों को उनकी भाषा में संदेश देने का नया प्रयोग हो रहा है। हो भी क्यों न, बाजार में भारी प्रतिस्पर्धा जो है! और सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रतिस्पर्धा दूसरे ग्रीटिंग कार्डों से नहीं है बल्कि मेल और एसएमएस से ही है, जहाँ भाषा बिलकुल उदार और निजता से रची-बसी है।

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