संचार क्रांति से बदलती तस्वीर

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आर्थिक सुधार तथा 1997 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के गठन से स्थिति बदली और दूरसंचार क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश का रास्ता खुल गया। सरकार के इस निर्णय से दूरसंचार के क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन आया और 2003 में भारत में संचार साधन उपयोग करने वालों में 5 प्रतिशत की वृद्घि हो गई।

इस साल वार्षिक वृद्घि दर 0.6 फीसदी रही, जो पिछली वार्षिक वृद्घि दर से 15 गुना ज्यादा रही। संचार सुविधाओं के मामले में हमारा देश निश्चित ही मजबूती हासिल करता जा रहा है। वैसे हमारी प्रगति का रास्ता 1947 में आजादी मिलते ही खुल गया था।

संचार सुविधाओं के मामले में भारत जहाँ वर्ष 1948 में 0.02 प्रतिशत के आँकड़े पर था, वहीं 50 साल बाद यानी 1998 में यह बढ़कर 1.96 प्रतिशत पर पहुँच गया। वार्षिक वृद्घि पर नजर डालें तो यह 0.04 प्रतिशत के आसपास रही। इस समय भारत में टेलीफोन वितरण की कमान केंद्र सरकार और इससे जुड़ी पब्लिक सेक्टर कंपनियों के हाथों में ही थी।

वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधार तथा 1997 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के गठन से स्थिति बदली और दूरसंचार क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश का रास्ता खुल गया। सरकार के इस निर्णय से दूरसंचार के क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन आया और 2003 में भारत में संचार साधन उपयोग करने वालों में 5 प्रतिशत की वृद्घि हो गई।

इस साल वार्षिक वृद्घि दर 0.6 फीसदी रही, जो पिछली वार्षिक वृद्घि दर से 15 गुना ज्यादा रही। वर्ष 2003 में ही प्राधिकरण ने टैरिफ में कटौती करते हुए दूरसंचार कंपनियों के बीच खुली प्रतिस्पर्धा छेड़ दी। टेलीफोन ऑपरेटरों के बीच छिड़ी जंग के साथ ही प्राधिकरण ने एक और कदम उठाते हुए ऑपरेटरों के मध्य क्रॉस सब्सिडी घटा दी।

पहले क्रॉस सब्सिडी क्षेत्रीय राजस्व का 30 प्रतिशत थी, जो वर्तमान में घटकर 3 फीसदी रह गई है। इसका परिणाम और भी आश्चर्यजनक निकला। वर्ष 2006 में संचार सुविधाओं का उपयोग करने वालों की संख्या 15 फीसदी हो गई जबकि यह लक्ष्य तो 2010 के लिए तय किया गया था।

संचार क्षेत्र में भारत की वर्तमान वृद्घि को देखते हुए योजनाकारों ने अब वर्ष 2010 के लिए 40 फीसदी का लक्ष्य तय किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में दूरसंचार के अलावा किसी अन्य क्षेत्र ने इतनी तरक्की कभी नहीं की। हालाँकि भारत अब भी कई मामलों में चीन से पीछे है। लेकिन दूरसंचार के क्षेत्र में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।

आज भारत में साढ़े चार करोड़ फिक्स लाइन फोन हैं, जिनके जरिए भारत के लोग हर दिन एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। टेलीफोन के मुकाबले केबल टीवी की संख्या ज्यादा है। भारत में साढ़े छः करोड़ घरों में केबल टीवी चल रहा है।

दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ टेलीफोन की अपेक्षा केबल के उपयोगकर्ताओं की संख्या ज्यादा है। 1998 तक की स्थिति ही देखें तो भारत में निजी टेलीफोन कंपनियों का अस्तित्व नगण्य था, जबकि आज संचार क्षेत्र के लगभग 70 प्रतिशत भाग पर निजी कंपनियों का कब्जा है।

बात यदि मोबाइल टैरिफ की करें तो वर्ष 1998 के मुकाबले आज यह 1/40 है। इसका कारण साफ है। निजी कंपनियों में मची होड़ का फायदा सीधे उपभोक्ताओं को मिल रहा है और संचार क्षेत्र का विस्तार हो रहा है।

मोबाइल टैरिफ में कटौती के कारण अब यह सभी की पहुँच में आ गया है। हमारे देश में लोगों की विशाल संख्या है। यदि किसी भी आर्थिक गतिविधि में इस संख्या को आत्मसात किया जाए तो चमत्कारिक परिणाम आ सकते हैं, जैसा कि दूरसंचार के क्षेत्र में हुआ है।

भविष्य के लिए क्या सबक है?
भारत के कई ग्रामीण क्षेत्र अभी भी मोबाइल की पहुँच से बाहर हैं। शहरी क्षेत्रों में तो मोबाइल ने आशातीत वृद्धि की है, लेकिन गाँवों तक मोबाइल की रिंगटोन ठीक से नहीं जा पाई है। अब सरकार दूरसंचार नियामक आयोग द्वारा 2004 में की गई अनुशंसाओं को अपना रही है, जिसमें कहा गया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल टॉवर लगाने के लिए यूएसओ फंड का सहारा लिया जाना चाहिए।

यदि ऐसा होता है तो दूरसंचार के क्षेत्र ने जिस तरह शहरों में प्रगति की है, गाँवों में भी वही क्रांति लाई जा सकेगी। और तब भारत के 50 करोड़ लोग हर दम कनेक्ट रहेंगे। इस प्रकार चीन के बाद भारत का नेटवर्क दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क होगा।

ई-गवर्नेंस और अन्य विकासात्मक कार्यक्रमों को नई दिशा देने वाले संचार के अत्याधुनिक साधन ब्रॉडबैंड की स्थिति भारत में जरूर कुछ कमजोर है। यदि अमेरिका जैसे सशक्त देशों की तरह भारत को संचार सुविधाओं को मजबूत करना है तो एक ही तार या बेतार के जरिए टेलीफोन, ब्रॉडबैंड, टीवी और अन्य सुविधाएँ मुहैया करवाना होगी।

इससे होगा यह कि अनेक सुविधाओं को बहुत कम दाम में हर वर्ग तक पहुँचाया जा सकेगा। इसके लिए वर्ष 2001 में कनवर्जेंस बिल तैयार किया गया था, लेकिन यह अब तक कानून नहीं बन पाया।

मुझे पूरा विश्वास है कि दूरसंचार के क्षेत्र में भारत तरक्की की जिस राह पर चल रहा है, वह कभी रुक नहीं सकती। और यदि ऐसा हुआ तो अगले दस साल में भारत के लगभग हर व्यक्ति के पास फोन होगा, शहरों और गाँवों के हर घर में टीवी होगा और ब्राडबैंड कनेक्शन भी मौजूद होगा। इस प्रकार हर व्यक्ति अपने गाँव में ही उच्च शिक्षित हो सकेगा।

यहाँ तक कि कॉल सेंटर और बीपीओ भी अपने घर से ही संचालित कर सकेगा और कई शिक्षित भारतीय दूसरी हरित क्रांति लाने के लिए फिर गाँवों की ओर कदम बढ़ा देंगे। दक्षिण के कुछ राज्यों में तो ऐसा हो भी रहा है, देश के शेष भागों को भी इससे सबक लेना चाहिए।
( लेखक भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के पूर्व अध्यक्ष हैं।) प्रदीप बैजल

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