डांस इंडिया डांस

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भरत मुनि ने जब नाट्यशास्त्र की रचना की, उसमें शास्त्रीय मुद्राओं का समावेश कर उसे परिभाषित किया, अंग संचालन उसी के
अनुरूप करने के निर्देश दिए तब उन्हें शायद इस बात का आभास नहीं था कि कलियुग में एक मुआ डब्बा आएगा जो नृत्य आदि को नए ढंग से रचेगा। पहले कविता लिखी जाती थी, "आज सारा देश अपने लाम पर है" आज गाते हैं "आज सारा देश अपने डांस पर है।" नृत्य तो आनंद का पर्याय है, खुश होने पर सबके मन मयूर नाचने लगते हैं पर आज तो बिना खुश हुए ही नाचना पड़ रहा है।

जिसे देखो वह नाच रहा है। दालों और अनाज के ऊपर चढ़ते भावों पर मुंबई के सटोरिए नाच रहे हैं तो इनका दाम सुन बाजार में गरीब नाच रहा है। दिनभर की मजूरी सौ रुपए अंटी में दबाए पूरी गृहस्थी आँखों में ले हाट में नाचता फिर रहा है।

शक्कर के जमाखोर कच्छ से महाराष्ट्र तक गोडाउन देख उछल रहे हैं, उन्हें लावणी या तमाशा करने में मजा आ रहा है। डांस इंडिया डांस, समाचार है ही नहीं-अखबार के मुख्यपृष्ठ पर पूरे पेज का विज्ञापन ही विज्ञापन है, नाच रहे हैं अखबार वाले, सेंसेक्स ऊपर जा रहा है- नाचो भैया नाचो।

संतों का दरबार लगा है, भक्त खासकर भक्तिनें नाच रही हैं। भगवान के सामने संत कहते हैं जो भगवान के सामने नाच लेता है उसे संसार के सामने नहीं नाचना पड़ा। ये मुक्ति है, नृत्य में मुक्ति है। कविता में नहीं। कुंभ का मेला लगा है-चौरासी लाख योनियों को पारकर आए लोग अब फाइनल मूड में हैं-नाचो दम लगाकर नाचो। भक्त पार्क में घुसकर नेशनल डांस में लगे हैं।

लोग कहते हैं, भारत मंदी से उबर गया है। खबरें मिलेगी, बेरोजगारों के घर में दाना-पानी आएगा, कौन नहीं नाचेगा ये खबर सुनकर-डांस इंडिया डांस। बहिन जी के लिए नोटों की माला आ रही है-जैसे फूल पर ओसकण चमकते हैं वैसे ही नोटों पर स्वेदकण, मेहनतकश मजदूरों के चमक रहे है-नाच रहे हैं पार्टी वाले क्या गिफ्ट है। लूटपाट करने वाले खुश क्या मोटरबाइक हैं चेन लूटो, नोट लूटो और गायब। लोगों के लिए डकैती खुले आम हो रही गई है। अजी एटीएम ही उखाड़कर ले चलो, इसे तोड़ेंगे फिर नाचेंगे।

थोड़ी शांति मिली थी कि मरा आईपीएल आ गया। स्टेडियम के स्टेडियम ठस भरे हैं और नाच रहे हैं लोग चौकों-छक्कों पर। आनंद बालाएँ ठुमके लगा रही हैं जयपुर वाले कहते हैं-सर से पांव तक सब ढक लो फिर ठुमको। पैसों की बरसात है-कौन नहीं नाचेगा। टीवी का पेट भरने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा। देश भर की सारी भाषाओं के चैनल देख लीजिए सब जगह नच ले इंडिया।

इतने आनंद में ये हमारा देश जो कभी सोने की चिड़िया शायद ही रहा हो। संसद की कैंटीन में थाली के भाव, भोजन की किस्में जब मोहल्ले वालों ने पढ़ी तो आनंदीलाल ठंडी सांस भरकर बोले-इस कीमत में ऐसा खाना अपनी किस्मत में नहीं है क्या-मुसदीलाल सुनकर हँसे और बोले-है जरूर पर उसके लिए चुनाव लड़ना पड़ता है-डांस इंडिया डांस।

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